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यूपी के सीएम Yogi Adityanath ने लखीमपुर खीरी के मुस्तफाबाद गांव का नाम बदलकर ‘Kabirdham’ रखने का प्रस्ताव रखा

यूपी के सीएम Yogi Adityanath ने लखीमपुर खीरी के मुस्तफाबाद गांव का नाम बदलकर ‘Kabirdham’ रखने का प्रस्ताव रखा

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को घोषणा की कि राज्य सरकार जल्द ही Mustafabad (लखीमपुर खीरी जिले) नामक गांव का नाम बदलकर कबीरधाम रखने की प्रक्रिया आरंभ करेगी।

उनका कहना था कि यह कदम उस इलाके की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक पहचान को पुनर्स्थापित करने की ओर है, जो कि महान संत Sant Kabir की विरासत से जुड़ी मानी जाती है। 

सीएम ने समारोह के दौरान कहा कि “जब मुझे पता चला कि गांव में मुस्लिम आबादी नहीं है लेकिन नाम मुस्तफाबाद रखा गया है, तो मैं चौंक गया। फिर मैंने कहा — हमें इसे बदलना चाहिए, इसे कबीरधाम कहना चाहिए।” 

उन्होंने यह भी कहा कि यह नाम-बदलाव उनकी सरकार की उन पहलों के अनुरूप है जिनमें पूर्व काल के नामों को वापस लाना शामिल है, उदाहरण के लिए अयोध्या-फैजाबाद, प्रयागराज-इलाहाबाद वगैरा। 

घोषणा का मुख्य उद्देश्य है – उस स्थान की सांस्कृतिक विरासत को सम्मान देना, जहां संत कबीर की भक्ति-धारा, उनकी शिक्षाएं और उनके जीवन का प्रभाव आज भी माना जाता है। इस प्रकार, नाम बदलकर ‘कबीरधाम’ रखना केवल एक नाम परिवर्तन नहीं बल्कि एक प्रतीकात्मक पुनरुद्धार है।

उक्त निर्णय पर कुछ महत्वपूर्ण बातें इस प्रकार हैं:

सांस्कृतिक-धार्मिक दृष्टिकोण: यह कदम जात-पात, समुदाय और समय के साथ बदलते सामाजिक स्वरूप के परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। नामकरण बदलने का निर्णय यह संकेत देता है कि राज्य सरकार उन स्थानों को पुनर्स्थापित करना चाहती है, जिनकी धार्मिक-भक्ति एवं सांस्कृतिक धरोहर को समय के साथ कमतर समझा गया हो।

प्रशासनिक प्रक्रिया: नाम-बदलाव केवल घोषणा भर नहीं है; उसके लिए सरकार को प्रस्ताव तैयार करना होगा, विभागीय मंजूरी लेनी होगी, स्थानीय प्रशासन को संलग्न करना होगा और अंततः राजकीय रूप से उसका नाम परिवर्तन करना होगा।

समानुभूति व विवाद-साध्यता: नाम बदलने जैसी पहल सार्वजनिक और सामाजिक संवेदनाओं को छूती है। कुछ लोगों को यह परिवर्तन अच्छी पहल लगेगी, तो कुछ इसे विवादित भी मान सकते हैं — विशेष रूप से इतिहास, समुदाय-भावनाओं व नामकरण के सामाजिक-राजनीतिक आयामों के नजरिए से।

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भविष्य की चुनौतियाँ: नाम बदलने के बाद वास्तविक विकास, सुधार व प्रशासन-सुविधाओं का भी ध्यान रखना होगा ताकि बदलाव सिर्फ नाम तक सीमित न रह जाए, बल्कि उस क्षेत्र का जीवन-स्तर, पहचान व प्रतिष्ठा भी सुधार सके।

सीएम ने कार्यक्रम में यह भी बताया कि उनकी सरकार अब धार्मिक स्थलों, तीर्थ-स्थान, सांस्कृतिक धरोहरों के पुनरुद्धार और सौंदर्यीकरण पर बल दे रही है – ताकि लोगों की आस्था व पर्यटन दोनों बढ़ें। उन्होंने कहा कि पहले ऐसा नहीं था कि इन जगहों को प्राथमिकता दी जाती थी।

लगभग इस प्रकार, यह नाम-बदलाव सिर्फ एक प्रशासनिक कदम नहीं है, बल्कि उस भूमि, उस क्षेत्र और उसके लोगों के मान-सम्मान और इतिहास से जुड़ी एक पहल के रूप में देखा जा सकता है।

वर्षों से इतिहास-परंपरा-संस्कृति के बीच पुल बनाने की कोशिशें होती रही हैं, और यह कदम भी उसी प्रवाह में आता दिखता है — एक तरह से कहना हो तो यह “भूतकाल की छाया में अपने-आप को देखना और पुरानी गलियों को उजागर करना” है।

अंततः, ‘कबीरधाम’ नाम में वह संदेश है — कि एक ऐसा स्थान जिसे संत कबीर जैसी आध्यात्मिक विभूति से जोड़ा गया है, उसे उस नाम-और-पहचान के साथ जाना जाए, जो उस विरासत को सही मायने में प्रतिबिंबित करे।


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