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बिहार चुनाव 2025: 26 सेकंड में जारी हुआ एनडीए का घोषणापत्र, Ashok Gehlot ने उसे “झूठों की श्रृंखला” कहा

बिहार चुनाव 2025: 26 सेकंड में जारी हुआ एनडीए का घोषणापत्र, Ashok Gehlot ने उसे “झूठों की श्रृंखला” कहा

बिहार की राजनीति हमेशा से एक रंगमंच रही है — जहाँ सत्ता की बाजी, वादों का शोर और जनता की उम्मीदें मिलकर एक ऐसा दृश्य बनाती हैं, जिसे देशभर की निगाहें टकटकी लगाकर देखती हैं।
और अब 2025 का चुनावी मौसम उसी राजनीति के मौसम का नया अध्याय खोल चुका है।

🌅 घोषणापत्र की अनोखी शुरुआत — केवल 26 सेकंड में पूरा हुआ “संकल्प पत्र” का विमोचन

पटना के एक भव्य लेकिन सधे मंच पर, जब एनडीए के शीर्ष नेता मीडिया के सामने आए, तो किसी ने उम्मीद नहीं की थी कि प्रेस कॉन्फ्रेंस इतनी छोटी होगी कि लोग टाइमर भी चालू करने से पहले खत्म देख लें।
हाँ — महज़ 26 सेकंड।
इतने कम वक्त में “संकल्प पत्र” जारी हुआ, कुछ पंक्तियाँ पढ़ी गईं, कैमरों ने फ्लैश किया, और नेता मंच से उतर गए।

देशभर के मीडिया हाउस हैरान रह गए — क्या ये घोषणा थी या औपचारिकता?
जहाँ आमतौर पर राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र के पन्नों को गिनाते हैं, जनता से वादे करते हैं, और सवालों के जवाब देते हैं — वहीं एनडीए ने इस बार सब कुछ बिजली की रफ्तार से कर डाला।

🔥 अशोक गहलोत का तीखा हमला: “ये घोषणापत्र नहीं, झूठों की श्रृंखला है”

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस घटना पर सीधा प्रहार किया।
उन्होंने कहा —

“जब कोई दल 20 साल तक शासन में रहा हो, तो उसे नया सपना दिखाने से पहले अपना हिसाब देना चाहिए। 26 सेकंड में घोषणापत्र जारी करना सिर्फ इस बात का सबूत है कि उन्हें अपने ही वादों पर भरोसा नहीं रहा।”

गहलोत ने सवाल उठाया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मंच पर तो मौजूद थे, लेकिन उन्होंने एक भी शब्द क्यों नहीं बोला?
क्या ये डर है जनता के सवालों से? या जवाब देने के लिए कुछ बचा ही नहीं?

उन्होंने इसे “लोकतंत्र का मज़ाक” बताया और कहा कि जनता अब “झूठ के पोस्टर” से नहीं, “विकास के सबूत” से वोट देगी।

📜 एनडीए का दावा: ‘लाखपति दीदी’, ‘एक करोड़ नौकरियां’, और किसानों के लिए नई योजनाएँ

एनडीए के इस घोषणापत्र में जो बातें सबसे ज़्यादा सुर्खियों में हैं, उनमें शामिल हैं:

1 करोड़ सरकारी नौकरियों का वादा — एक ऐसा दावा जो सीधे बिहार के युवाओं को लुभाने की कोशिश करता है।

महिलाओं के लिए “लाखपति दीदी” योजना, जिसके तहत हर स्वयं सहायता समूह की महिला को आर्थिक सशक्तिकरण के लिए सहायता दी जाएगी।

किसानों के लिए ₹9,000 प्रति फसल सहायता की नई नीति।

हर जिले में औद्योगिक पार्क और स्किल डेवलपमेंट हब स्थापित करने का वादा।

शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर “डिजिटल बिहार मिशन” के तहत नई तकनीक-आधारित सेवाओं की बात।

लेकिन विपक्ष का कहना है — "वादे वही पुराने, बस पैकिंग नई है।"
कांग्रेस और महागठबंधन ने सवाल उठाया कि पिछले घोषणापत्र में जो नौकरियाँ, उद्योग और योजनाएँ थीं, उनका क्या हुआ?

🎙️ 26 सेकंड के पीछे की राजनीति

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह 26 सेकंड का शो किसी “स्पीड मिशन” से ज़्यादा “नियंत्रित रणनीति” थी।
एनडीए नहीं चाहता था कि मीडिया ज्यादा सवाल करे, विपक्षी बयानबाज़ी को तूल दे, या किसी विवादित मुद्दे पर चर्चा छेड़े।

क्योंकि इस बार का चुनाव सिर्फ “विकास बनाम वादे” का नहीं, बल्कि “विश्वसनीयता बनाम विश्वासघात” का बन चुका है।
नीतीश कुमार की बार-बार की राजनीतिक पलटी, भाजपा के साथ नई समीकरण, और विपक्षी गठबंधन के तेजस्वी यादव जैसे युवा चेहरों के उभार ने इस चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है।

📢 जनता की प्रतिक्रिया — “अब भाषण नहीं, भरोसा चाहिए”

पटना से लेकर गया, भागलपुर से दरभंगा तक, जनता में एक सवाल गूंज रहा है —
“क्या इस बार वादे पूरे होंगे?”

युवा वर्ग कह रहा है — “हमने स्किल डेवलपमेंट सुना, स्टार्टअप सुना, अब जॉब भी सुनना है लेकिन देखना भी है।”
महिलाएँ कहती हैं — “लाखपति दीदी तो अच्छा सुनाई देता है, पर बैंक अकाउंट में पैसे कब आएंगे?”

गाँवों में किसान बताते हैं कि अगर ₹9,000 प्रति फसल योजना सच में लागू हो जाए तो राहत मिलेगी, लेकिन इतिहास गवाह है कि वादा और हकीकत के बीच बिहार की धरती पर लंबा अंतर रहा है।

How Ashok Gehlot lost but BJP failed to repeat its best in Rajasthan -  India Today

⚖️ विपक्ष की रणनीति — एनडीए के “संकल्प पत्र” के जवाब में “जन-प्रतिज्ञा पत्र”

कांग्रेस और महागठबंधन अब इसी घोषणापत्र को केंद्र बनाकर जनता के बीच जा रहे हैं।
तेजस्वी यादव और अशोक गहलोत ने मिलकर “जन-प्रतिज्ञा पत्र” तैयार करने की घोषणा की है, जिसमें जनता से सीधे सवाल पूछे जाएंगे —

“क्या आपके गाँव में स्कूल है?”
“क्या आपके मोहल्ले में नौकरी है?”
“क्या आपके बच्चे का भविष्य सुरक्षित है?”

ये सवाल एनडीए के “वादों” से ज्यादा गहरे हैं क्योंकि इनका जवाब जनता के अनुभवों में छिपा है।

🌾 बिहार का भविष्य — वादों की किताब या बदलाव की कहानी?

अब सबकी निगाहें आगामी विधानसभा चुनावों पर हैं।
एनडीए की कोशिश है कि पिछले वर्षों के इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और महिला सशक्तिकरण योजनाओं को अपना वोट बैंक बनाए रखे।
वहीं कांग्रेस और महागठबंधन जनता के मन में वही पुराना सवाल दोहरा रहे हैं —

“क्या 26 सेकंड में बिहार का भविष्य लिखा जा सकता है?”

समय बताएगा कि जनता “संकल्प पत्र” पर भरोसा करती है या “जन-प्रतिज्ञा” पर।
लेकिन इतना तय है — इस बार का चुनाव सिर्फ दलों का नहीं, जनता की सहनशीलता का इम्तिहान है।

📚 निष्कर्ष

बिहार के इस राजनीतिक नाटक में हर पात्र अपने संवाद बोल चुका है।
अब बारी है जनता की — जो इस पटकथा की असली निर्देशक है।
26 सेकंड की प्रेस कॉन्फ्रेंस चाहे कितनी भी छोटी रही हो, उसका असर अब आने वाले महीनों तक गूंजेगा।

क्योंकि बिहार में लोग भूलते नहीं,
वो बस वक़्त का हिसाब रखते हैं —
और जब वो हिसाब देते हैं,
तो सत्ता की कुर्सी तक हिल जाती है।


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