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चीन पुनर्जन्म प्रक्रिया से बाहर निकाले जाने पर आगबबूला, निकाला 'स्वर्ण कलश' फॉर्मूला, क्या होंगे दो दलाई लामा?

चीन पुनर्जन्म प्रक्रिया से बाहर निकाले जाने पर आगबबूला, निकाला 'स्वर्ण कलश' फॉर्मूला, क्या होंगे दो दलाई लामा?

चीन पुनर्जन्म की प्रक्रिया से बाहर निकाले जाने के बाद आगबबूला, पोटली से निकाला 'स्वर्ण कलश' फॉर्मूला, क्या दो दलाई लामा होंगे?

नई दिल्ली। तिब्बत और दलाई लामा को लेकर चीन और तिब्बती धर्मगुरुओं के बीच तनातनी एक बार फिर तेज हो गई है। हाल ही में तिब्बती बौद्ध धर्मगुरुओं ने दलाई लामा के पुनर्जन्म (Reincarnation) की प्रक्रिया पर चीन की दखलअंदाजी को खारिज कर दिया है। इस कदम के बाद चीन में सियासी हलचल तेज हो गई है और उसने अब अपनी पोटली से ‘स्वर्ण कलश’ (Golden Urn) फॉर्मूला फिर से निकाल लिया है।

दरअसल, चीन का दावा है कि दलाई लामा के अगले अवतार का चयन वही करेगा। इसके लिए वह 18वीं सदी में किंग राजवंश द्वारा अपनाए गए ‘स्वर्ण कलश’ फॉर्मूले का हवाला देता है, जिसमें एक गोल्डन पॉट में पर्चियां डालकर अवतार चुना जाता था।

लेकिन तिब्बती धार्मिक नेतृत्व का कहना है कि दलाई लामा का पुनर्जन्म तिब्बती बौद्ध परंपरा और धार्मिक प्रक्रियाओं के तहत ही होगा, जिसमें चीन की कोई भूमिका नहीं होगी। दलाई लामा स्वयं भी कई बार कह चुके हैं कि उनका अगला जन्म कहां होगा और होगा भी या नहीं, यह उनका व्यक्तिगत और धार्मिक निर्णय है।

क्या हो सकते हैं दो दलाई लामा?

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चीन पुनर्जन्म की प्रक्रिया से बाहर निकाले जाने के बाद आगबबूला, पोटली से निकाला 'स्वर्ण कलश' फॉर्मूला, क्या दो दलाई लामा होंगे?

विशेषज्ञों को डर है कि अगर चीन अपने दावे पर अड़ा रहा, तो भविष्य में दो दलाई लामा सामने आ सकते हैं— एक चीन द्वारा नियुक्त और दूसरा तिब्बती धर्मगुरुओं द्वारा चुना गया। इससे न केवल तिब्बत के धार्मिक अनुयायियों में भ्रम फैलेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी तिब्बत मुद्दा और जटिल हो जाएगा

चीन ने 1951 में तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद 1959 में तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह हुआ, जिसे बर्बरता से कुचल दिया गया। विद्रोह असफल होने पर 14वें दलाई लामा भारत भागकर आ गए और तब से वे भारत में ही निर्वासन में रह रहे हैं।

चीन लगातार तिब्बत पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए दलाई लामा के उत्तराधिकारी को अपने नियंत्रण में रखना चाहता है। चीन का तर्क है कि तिब्बत उसका अभिन्न हिस्सा है और दलाई लामा की नियुक्ति भी उसकी संप्रभुता के तहत आती है।

भारत की भूमिका अहम

भारत के लिए भी यह मामला बेहद संवेदनशील है, क्योंकि दलाई लामा पिछले 65 साल से भारत में रह रहे हैं। यदि दो दलाई लामा होते हैं, तो इससे भारत-चीन संबंधों में नई चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। भारत अब तक इस मुद्दे पर संयम बरतता आया है, लेकिन भविष्य में इस पर अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बन सकता है।

फिलहाल सारी दुनिया की नजर इस पर है कि क्या चीन अपने ‘स्वर्ण कलश’ फॉर्मूले पर अमल कर अपना दलाई लामा खड़ा करता है, या तिब्बती धार्मिक नेतृत्व अपनी परंपराओं के तहत अगले दलाई लामा की पहचान करता है। आने वाला समय ही बताएगा कि तिब्बत का धार्मिक और राजनीतिक भविष्य किस दिशा में जाएगा।


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