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BHU में छात्रों की गुहार: सुरक्षा जोखिम, खुला प्रवेश व उपेक्षित ढाँचा — कब सुधरेगा हमारा परिसर?

BHU में छात्रों की गुहार: सुरक्षा जोखिम, खुला प्रवेश व उपेक्षित ढाँचा — कब सुधरेगा हमारा परिसर?

प्रस्तावना
वाराणसी की पवित्र-भूमि में स्थित BHU — दशकों पुरानी शैक्षणिक परंपराओं का प्रतीक — आज अपने कैंपस में छात्रों द्वारा उठाए गए सुरक्षा व संरचना-सम्बंधित गंभीर सवालों की गूँज से गूंज रही है। विश्वविद्यालय की देहरी में कदम रखते ही लगता है जैसे इतिहास की धरोहर व भविष्य की उम्मीदें एक दूसरे से टकरा रहीं हों। पर इस शान्ति के पर्दे के पीछे कुछ छात्र ऐसा अनुभव कर रहे हैं कि उन्हें कोई गारंटी नहीं कि वे सुरक्षित हैं।

छात्रों की शिकायतें

एक छात्रा ने खुलकर कहा है:

“ब्रिला हॉस्टल के पास पूरी रात कुछ लोग बिना डर के घूमते हैं। जब हम शिकायत करते हैं, प्रोक्र्टर हमें ‘खिड़की बंद रखो’ कहकर टाल देते हैं।” 

छात्रों का आरोप है कि प्रवेश-द्वारों पर पर्याप्त पहचान-तंत्र नहीं है, ऐसे में ‘‘अंतरालवाले लोग’’ बिना रोक-टोक कैंपस में प्रवेश कर जाते हैं।

हॉस्टल और कैंपस की इन्फ्रास्ट्रक्चर — जैसे सीसीटीवी कैमरे, पर्याप्त लाइटिंग, बैरियर आदि — अक्सर समय पर नहीं हैं या सही से काम नहीं कर रहे। 

बाहरी प्रवेश व निगरानी-घाटा
प्रशासन द्वारा दिए गए निर्देश में यह भी सामने आया है कि ‘‘बाजार-तर्ज़ से आए लोग’’ हॉस्टल या कैंपस में अनाधिकृत रूप से रह जाते हैं, जिनकी पहचान नहीं हो पाती। पिछले एक घटना में Indian Institute of Technology (BHU) के परिसर के पास एक छात्रा के साथ यौन हिंसा की वारदात सामने आई, जिसने एक बार फिर छात्रों के सुरक्षात्मक वातावरण पर सवाल खड़े कर दिए। 

इन्फ्रास्ट्रक्चर-उपेक्षा
कैंपस के पुराने बने भवन, हॉस्टल के कम रख-रखाव वाले हिस्से, बाहरी इलाके में अपर्याप्त प्रकाश व्यवस्था — ये कुछ ऐसे बिंदु हैं जिनपर छात्रों ने लगातार आवाज उठाई है। उदाहरण के तौर पर, हॉस्टल-हॉल के बाहर लाइटिंग कम होना, सीसीटीवी कैमरों की पुरानी स्थिति और निगरानी स्टाफ की कमी। इस तरह की कमियों ने ‘‘रात में घूमने का डर’’ छात्रों में पैदा कर दिया है।

प्रशासन की प्रतिक्रिया व उठाए गए कदम
प्रशासन ने कुछ जवाब दिए हैं। उदाहरण के लिए:

BHU ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए अपने मोबाइल ऐप “नमस्ते BHU” में इमरजेंसी बटन फीचर चालू किया है, जो लोकेशन भेजकर तुरंत मदद बुला सकता है। 

परिसर में रात-10 बजे के बाद कुछ गेटों को नियंत्रित करने व सीसीटीवी बढ़ाने की योजना पर चर्चा चल रही है।

वन्य विभाग के साथ मिलकर विश्वविद्यालय कैंपस में संभावित अवैध क्षय-कार्य (पेड़ों की कटाई व अन्य) को लेकर जांच हुई है, जो इन्फ्रास्ट्रक्चर की उपेक्षा का भी परिचय देता है। 

वातावरण व माहौल
छात्र-जीवन सिर्फ कक्षाओं व पुस्तकों तक सीमित नहीं है — हॉस्टल में रात-का समय, कैंपस में घूमना, दोस्तों के साथ बैठना, सुरक्षा का अहसास एक बहुत बड़ा हिस्सा है। लेकिन आज BHU के कई छात्रों का अनुभव ये है कि यह माहौल अब उतना सुरक्षित नहीं रहा जितना वे उम्मीद करते थे।

“कैंपस में कोई भी कोना सुरक्षित नहीं है।” — छात्रा, Naveen हॉस्टल
इस तरह की आवाजें यह संकेत देती हैं कि सिर्फ एक-दो घटनाएँ नहीं बल्कि व्यवस्था-सम्बंधित बड़े अंतरों का नाममात्र का प्रतिनिधित्व कर रही हैं।

चुनौतियाँ व गहरी जड़ें

खुले कैंपस प्रणाली: BHU का विशाल पन-था campus (लगभग 1,300 एकड़) ऐसा है जहाँ अनेक प्रवेश-द्वार, बाहरी लोग, कई हॉस्टल व विभाग फैल चुके हैं। इस व्यापकता ने निगरानी व निष्पादन को कठिन बना दिया है। 

संसाधनों-की कमी व प्राथमिकता का अभाव: सीसीटीवी, बैरियर, सुरक्षा चौकियों, पर्याप्त स्टाफ — इन सब में इंतज़ार या धीमी गति से सुधार हुआ है।

वातावरण में भय: जब छात्र महसूस करते हैं कि यदि कुछ हो गया तो उन्हें सुनवाई नहीं मिलेगी-- यही असुरक्षा का मूल है।

सामाजिक-राजनीतिक जटिलताएँ: बाहरी तत्वों के नियोजन, हॉस्टल-प्रबंधन, स्थानीय शिकायत और प्रशासनिक जवाबदेही की कमी भी समस्या को गहरा बनाती हैं।

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छात्रों की अपेक्षाएँ व सुझाव
छात्र-समुदाय ने कुछ स्पष्ट अपेक्षाएँ रखी हैं:

एक बंद या नियंत्रित-प्रवेश वाला कैंपस मॉडल, जहाँ रात-10 बजे के बाद वाहनों-व बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश कड़े नियंत्रण में हो। 

पूरी कैंपस में बेहतर प्रकाश व्यवस्था व कार्यशील सीसीटीवी कैमरों का नेटवर्क।

हॉस्टल-हॉल के बाहर सुरक्षा गश्त व निगरानी स्टाफ का वृद्धि।

शिकायतों के लिए त्वरित कार्रवाई व पारदर्शी प्रक्रिया — छात्रों को भरोसा देना कि «हम सुनेंगे और करेंगे».

नियमित रख-रखाव व इन्फ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड: पुरानी बिल्डिंग्स, हॉस्टल व स्नातक परिसरों की मरम्मत-कार्य समय से हो।

भविष्य-पथ व सुधार-के-लिए-रास्ते
अगर BHU ऐसा मॉडल अपनाए कि “सुरक्षा-पहला” फ़ोकस बने, तो यह सिर्फ छात्रों को सुरक्षा का अहसास नहीं देगा, बल्कि विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को भी नया आयाम देगा।

सभी प्रवेश-द्वारों पर पहचान-चेक व घंटे-नियंत्रण लागू करना।

स्मार्ट-सीसीटीवी प्रणालियों के साथ सेंटरल मॉनिटरिंग रूम बनाना।

हॉस्टल परिसर, especially नाइट टाइम, में अतिरिक्त प्रकाश व गश्त सुनिश्चित करना।

छात्रों-सहभागिता: छात्र-प्रतिनिधियों को सुरक्षा कमेटियों में लाना ताकि प्रत्यक्ष अनुभव प्रशासन तक पहुँच सके।

नियमित ऑडिट व समीक्षा: इंफ्रास्ट्रक्चर, सुरक्षा व्यवस्था व शिकायत-निवारण की सालाना समीक्षा हो।

निष्कर्ष
जो विश्वविद्यालय कभी ज्ञान-दीप का केंद्र था, आज उसी परिसर के भीतर कुछ छात्रों को डर सुनाई दे रहा है। यह शर्मनाक है। BHU जैसी पुरानी, प्रतिष्ठित संस्था के लिए यह समय है — पीछे लौट कर देखें कि परंपराएँ सिर्फ नाम नहीं रह जाएँ, बल्कि विद्यार्थियों को सुरक्षित-व समृद्ध वातावरण दें।
अगर सुधार न हुआ तो यह सिर्फ कविता-जैसी भाषा नहीं रहेगी बल्कि एहतियाती चिह्न बनेगी कि बड़ी-संगठनें भी समय-के-सह बदलना भूल जाती हैं।


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