लालू-राबड़ी-राहुल के विकास एजेंडे पर सवाल, बोले अमित शाह: बिहार को चाहिए नया मोड़
- byAman Prajapat
- 07 November, 2025
7 नवंबर 2025 को बिहार विधानसभा चुनाव के शुरुआती चरण के मद्देनजर जमुई जिले में आयोजित एक जनसभा में भाजपा के शीर्ष नेता अमित शाह ने सामना किया विपक्षी दलों पर तेज भाषा में आरोप-प्रचार। उन्होंने कहा कि बिहार को विकास का नया मोड़ चाहिए, लेकिन जो लोग राज्य में शासन कर चुके हैं या शासन करना चाहते हैं — लालू प्रसाद यादव-राबड़ी-देवी-राहुल गांधी की गुट — उनके पास कोई ठोस विकास एजेंडा नहीं है।
उन्होंने कहा:
“लालू-राबड़ी-राहुल के पास विकास का एजेंडा नहीं है।”
वे गरीबों के लिए कुछ नहीं कर पाए, सिर्फ घुसपैठियों को फायदा हुआ।
“वे अपने बेटों-बेटियों की भलाई के लिए चिंतित रहे — लेकिन बिहार को विकसित बनाने के लिए नहीं।”
आरोपों की मुख्य धारा
विकास-कार्य में कमी: अमित शाह ने कहा कि उक्त नेताओं के शासन में बिहार में विकास-गति कमजोर रही। उन्होंने यह बात जोर-शोर से कही कि यदि पांच और साल दिया जाए तो बिहार को विकसित राज्यों की श्रेणी में लाया जा सकता है।
घुसपैठियों को संरक्षण: उन्होंने आरोप लगाया कि उन नेता-गुटों ने राज्य में घुसपैठियों को रोजगार, राशन, सुविधाओं में शामिल किया, जबकि असली जरूरतमंदों को वरीयता नहीं मिली।
‘जंगल राज’ का खतराः उन्होंने चेतावनी दी कि यदि यह गठबंधन फिर सत्ता में आता है, तो राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है।
दांपत्य-वंशवाद समेत अन्य राजनीतिक आरोप: अमित शाह ने यह भी कहा कि राजनीतिक दलों ने विकास की बजाय अपने परिवार-सदस्यों की राजनीति को प्राथमिकता दी।

भाजपा/एनडीए-का विकास एजेंडा
शाह ने विपक्षी आरोपों के उलट अपनी पार्टी और गठबंधन के विकास-प्रस्तावों को भी प्रमुखता से रखा:
विकास कार्य: जैसे नए हवाई अड्डे, अस्पताल, बुनियादी ढांचे की शुरुआत।
महिलाओं, किसानों, वंचितों के लिए योजनाएँ एवं समर्थन का वादा।
यह दावा कि किसी भी तरह “घुसपैठियों” की समस्या को हल किया जाएगा तथा राज्य को सुरक्षित बनाया जाएगा।
विपक्ष-का जवाब एवं राजनीतिक माहौल
विपक्षी दलों ने इस पर अपनी प्रतिक्रियाएँ दी हैं — उदाहरण के तौर पर तेजस्वी यादव ने शाह के भाषण को ‘पुनरावृत्ति व नकारात्मकता’ का उदाहरण कहा और आरोप लगाया कि भाजपा समस्या की बजाय राजनीति कर रही है।
राजनीतिक माहौल यह है कि चुनाव प्रचार चरम पर है, मतदाता उत्साहित हैं, दोनों प्रमुख धड़ों — भाजपा/एनडीए एवं महागठबंधन — द्वारा मतदाताओं को प्रभावित करने की होड़ है।
विश्लेषण
अमित शाह द्वारा लगाये गए आरोप व्यापक और सीधे-सादे हैं: विकास-अभाव, सुरक्षा-चिंता, घुसपैठ-मुद्दा। ये ऐसे विषय हैं जो आम मतदाता के बीच में गूंज सकते हैं — खासकर ऐसे इलाकों में जहाँ विकास धीमा रहा हो।
विपक्ष के लिए चुनौती यह है कि सिर्फ आरोपों का सामना करना नहीं है बल्कि बेहतर, ठोस और लोक-हितकारी विकास-योजनाओं की रूपरेखा सामने लानी है।
बिहार की राजनीति में ‘विकास बनाम जात-पाठ, राजनीति-परिवारवाद’ जैसे पुराने और नए विषय मिलकर उभर रहे हैं। इस क्रम में, आरोप-प्रत्यारोप से अधिक मायने रखेंगे कि कौन अपने वादों को धरातल पर उतार पाएगा।
मतदाता समूहों (युवा, महिलाएं, किसान, प्रवासी कामगार) की भूमिका अब पहले से कहीं ज्यादा निर्णायक हो चुकी है — क्योंकि सूचना, जनगणना, प्रतिबद्धता सभी खुलकर सामने आ रही हैं।
निष्कर्ष
अमित शाह की यह जनसभा-भाषण बिहार की आगामी विधानसभा चुनाव की राजनीति में एक प्रमुख मोड़ है। इसने विकास-एजेंडा, सुरक्षा-चिंता, वंशवाद-सत्ता-प्रश्न को फिर से उजागर किया है। विपक्ष के लिए यह आवश्यकता बन गयी है कि वह न सिर्फ इन आरोपों का जवाब दे बल्कि अपने लिए नया, प्रमाण-उपलब्ध विकास-मॉडल प्रस्तुत करे। राज्य के मतदाताओं के लिए अब यह निर्णायक समय है — वे पहचानेंगे कि किसके पास सिर्फ भाषण है और किसके पास धरातल पर काम का एजेंडा।
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