EC ने मद्रास HC को बताया: अभिनेता विजय की TVK पंजीकृत राजनीतिक दल नहीं है
- byAman Prajapat
- 17 October, 2025

जब राजनीति, कानून और जनभावना एक-दूसरे से टकराते हैं, वहाँ सत्य की कहानी अक्सर घुमावदार होती है। अभिनेता से राजनीतिज्ञ बने विजय और उनकी संस्था TVK (Tamilaga Vettri Kazhagam) इन दिनों विवादों के केंद्र में हैं। Karur में एक जनसभा के दौरान हुए भीषण स्टैम्पेड ने 41 लोगों की जान ले ली, और अब यह मामला अदालतों और आयोगों में उलझा हुआ है।
इनका ताज़ा मोड़: चुनाव आयोग (Election Commission of India, EC) ने मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court, HC) को एक अहम बयान दिया — कि TVK एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल नहीं है। इस बयान से राजनीतिक हल्कों में हलचल मची है।
आइए, इस पूरे घटनाक्रम को क्रमबद्धतः देखें — तथ्य, दावे, जवाब, और उससे जुड़े कानूनी-राजनीतिक आयाम।
घटना-भूमिका: Karur स्टैम्पेड और जनता की आक्रोश
दिनांक और स्थान
27 सितंबर 2025 को तमिलनाडु के Karur ज़िले में एक राजनैतिक रैली आयोजित की गई थी, जो TVK ने आयोजित की थी। यह रैली विजय द्वारा संबोधित की जानी थी। अनुमानित संख्या की तुलना में बहुत अधिक जनसमूह उपस्थित हो गया।
प्राकृतिक घटना या मानवीय त्रासदी?
उपस्थित लोगों के मुताबिक, जब विजय की गाड़ी रैली स्थल पर पहुंची तो जनसैलाब ने एकचोटि खिंचाव दिखाया, लोग धक्का-मुक्की में फंस गए, और माहौल अचानक अराजक हो गया। इस दौरान 41 व्यक्तियों की मृत्यु हुई और अनेक घायल हुए।
जनता और मीडिया की प्रतिक्रिया
इस घटना ने तमिलनाडु ही नहीं, पूरे देश में चिंता जगाई। सोशल मीडिया पर लोग न्याय की मांग कर रहे हैं; परिवारों को क्षतिपूर्ति और दोषियों को सज़ा देने की आवाज़ बुलंद हुई।
अदालत और सरकारी हस्तक्षेप
मामले की गंभीरता को देखते हुए, एक सार्वजनिक हित याचिका (PIL) दायर की गई, जिसमें TVK की “derecognition” (पदच्युत) करने की मांग की गई थी। याचिका में यह दवा भी थी कि आयोग को यह कहा जाए कि TVK को मान्यता प्राप्त दल माना जाए, और उसे राजनीतिक वामण्डलों में शामिल किया जाए।
मद्रास HC ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए आयोग से जवाब मांगा कि क्या TVK को एक मान्यता प्राप्त दल मानना चाहिए या नहीं।
साथ ही, उच्च न्यायालय ने Karur स्टैम्पेड से जुड़े सभी मामलों को विशेष बेंच के समक्ष लाने और एक SIT (Special Investigation Team) गठित करने का आदेश दिया।
न्यायालय ने यह तर्क उठाया कि रैली आयोजकों और राजनैतिक दलों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए — विशेषकर जनसुरक्षा के मामलों में।
TVK की प्रतिक्रिया
विजय की पार्टी TVK ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उन्होंने निष्पक्ष और स्वतंत्र जाँच की मांग की है, ताकि दोष को सही तरीके से स्थापित किया जा सके।
EC का बयान: “TVK मान्यता प्राप्त दल नहीं”
यहाँ पर मामला उस मोड़ पर आ गया जहाँ चुनाव आयोग ने आधिकारिक रूप से मद्रास HC को यह बताया कि TVK एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल नहीं है।
संक्षिप्त रूप से आयोग की दलील इस प्रकार थी:
याचिकाकर्ता की मांग थी कि TVK को “derecognition” किया जाए। लेकिन आयोग ने कहा कि यह मांग अपनी जगह नहीं ठहरती क्योंकि TVK पहले से ही मान्यता प्राप्त दल नहीं है। यानी, “पदच्युत” करने का प्रश्न ही नहीं उठता।
इस “न मान्यता प्राप्त” का अर्थ है कि TVK ने अभी तक आयोग द्वारा उन शर्तों और मानदंडों को पूरा नहीं किया, जो किसी राजनीतिक दल को मान्यता प्राप्त करने के लिए आवश्यक होते हैं।
इसलिए, याचिका में की गई वह दवा कि TVK को मान्यता प्राप्त दल बनाया जाए या उसे सदस्यता दी जाए — वह याचिका की औचित्य को खो देती है।
इस बयान ने याचिकाकर्ता की मांग को कमजोर कर दिया है, क्योंकि अगर TVK मूलतः ही मान्यता प्राप्त नहीं है, तो उसे “पदच्युत” करना तर्क के दायरे से बाहर हो जाता है।
कानूनी-प्रक्रियात्मक आयाम और सवाल
इस पूरे घटनाक्रम में एक से अधिक कानूनी और संवैधानिक प्रश्न पनपते हैं — और ये विवाद सिर्फ इखट्ठा तथ्य नहीं हैं, बल्कि राजनीति और न्याय के बीच की जटिल लड़ाई को उजागर करते हैं।
क्या एक दल को मान्यता प्राप्त करना या न करना आयोग की स्वशक्ति है?
चुनाव आयोग के पास नियम होते हैं कि विचाराधीन दलों को किस आधार पर मान्यता दी जाए — जैसे चुनावों में भागीदारी, मत प्रतिशत, इकाई संगठन, आचार संहिता पालन आदि। यदि TVK उन मानदंडों को पूरा नहीं करता, तो आयोग का यह कहना कि वह मान्यता प्राप्त दल नहीं है, उसको विधिसम्मत आधार प्रदान करता है।
क्या याचिकाकर्ता की मांग वाजिब थी?
यदि TVK मान्यता प्राप्त नहीं है, तो “पदच्युत” की मांग एक तर्कहीन (redundant) विकल्प बन जाता है। याचिकाकर्ता शायद यह तर्क देना चाहता था कि TVK को दलों की तरह ही व्यवहार किया जाए — लेकिन कानूनी दृष्टिकोण से, नियमों की पूर्तियाँ पहले होनी चाहिए।
न्यायालय का दायित्व और जनहित
एक न्यायालय नागरिकों की सुरक्षा, जीवन हनन की घटनाओं की जांच और राजनैतिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी रखता है। यदि एक राजनीतिक दल जनसभा आयोजित करता है और उसमें त्रुटियों से मृत्यु होती है, न्यायालय को हस्तक्षेप करना चाहिए।
मद्रास HC ने इस भावना से विशेष बेंच गठित करने और SIT की स्थापना का आदेश दिया।
TVK को किस तरह की कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा?
यदि SIT जांच में यह पाया जाए कि नियमों का उल्लंघन हुआ — जैसे जनसमूह नियंत्रण, अनुमति शर्तों का उल्लंघन, सुरक्षा इंतज़ामों की कमी — तो TVK और उसके आधिकारिकों के खिलाफ आपराधिक या प्रशासनिक कार्रवाई हो सकती है।
साथ ही, राजनीतिक दलों को नियमों, सार्वजनिक सुरक्षा दिशा-निर्देशों और आचार संहिता का पालन करना अनिवार्य किया जा सकता है।
राजनीतिक असर
— यह मामला राज्य की राजनीति में टीका पट्टी हो सकता है।
— विपक्षी दल इसे अवसर मान सकते हैं कि वे TVK की “जिम्मेदारियों” पर सवाल उठाएँ।
— समर्थक शिविरों में यह आरोप लग सकता है कि ‘मनगढ़ंत मुकदमे’ चले रहे हैं।
— जनता की विश्वसनीयता पर असर पड़ेगा — यदि एक दल हादसे के बाद जवाबदेही नहीं देता, तो उसकी राजनीतिक छवि दांव पर हो सकती है।

संभावित आगे की कार्रवाई
इस विषय पर आगे क्या हो सकता है? आइए कुछ संभावित रुझानों पर नज़र डालें:
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
TVK ने HC के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। यदि शीर्ष न्यायालय इस मामले को स्वीकारता है और निर्देश जारी करता है, तो यह पूरे पलायन को एक नए मुकाम पर ले जाएगा।
SIT की रिपोर्ट और निष्कर्ष
SIT अपनी जांच करेगा — दोषी पाए जाने पर जो रिपोर्ट प्रस्तुत होगी, वह न्यायालय, मीडिया और जनता के समक्ष ही नहीं, राजनीतिक मोर्चों पर भी निर्णायक मोड़ हो सकती है।
राजनीतिक नीतियाँ और मोटे नियम
यह संभव है कि कोर्ट आगे राजनीतिक रैलियों, जनसभाओं और रोडशो को नियंत्रित करने हेतु दिशा-निर्देश जारी करे — जैसे मानक संचालन प्रक्रिया (SOP), अधिक पुलिस तैनाती, घटना पूर्व अनुमति और सार्वजनिक सुरक्षा उपाय।
TVK की स्थिति
यदि जांच निष्कर्ष नकारात्मक आता है, तो TVK को राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन यदि निष्पक्षता को बरकरार रखा जाए, और पार्टी अपनी जिम्मेदारियाँ स्वीकारे, तो वह राजनीतिक जमीन को स्थिर कर सकती है।
न्यायपालिका और आयोगों की भूमिका
इस मामले में न्यायपालिका और चुनाव आयोग की भूमिका बढ़ी हुई देखी जा रही है — दोनों संस्थाएँ यह दिशा देंगी कि राजनीतिक दलों को किस हद तक संरचनात्मक और जवाबदेह रखा जाए।
निष्कर्ष
सच तो ये है कि राजनीति और प्रसिद्धि, बड़े मंच और जनता का समर्थन — ये सब अपेक्षाएँ बनाए रखते हैं। लेकिन जब किसी जनसभा में इतनी मौत हो जाएँ, तो सवाल केवल राजनीतिक नहीं — नैतिक, कानूनी और संवैधानिक हो जाते हैं।
चुनाव आयोग का यह बयान कि TVK एक मान्यता प्राप्त दल नहीं है, कोई मामूली शब्द नहीं है — इसने याचिका की जमीन हिला दी है और पूरे मुकदमे को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है।
यदि न्यायालय, SIT और आयोग निष्पक्ष रूप से अपना काम करें, तो यह मामला एक उदाहरण बन सकता है कि राजनीति में जिम्मेदारी क्या होती है। जनता को भी नजर रखनी होगी — क्योंकि सत्ता की भाषा अन्ततः जनता की ज़िंदगी से जुड़ी होती है।
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