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नीतीश सरकार पर 70,000 करोड़ के घोटाले का आरोप, CAG रिपोर्ट ने मचाया बिहार की सियासत में भूचाल

नीतीश सरकार पर 70,000 करोड़ के घोटाले का आरोप, CAG रिपोर्ट ने मचाया बिहार की सियासत में भूचाल

नीतीश सरकार पर 70,000 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता का आरोप, CAG रिपोर्ट से सियासत गरमाई

पटना, 30 जुलाई 2025 — बिहार की सियासत में इन दिनों बवाल मचा हुआ है और इसकी वजह बनी है कैग (CAG) की एक रिपोर्ट, जिसमें राज्य सरकार पर ₹70,877 करोड़ रुपये की वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाया गया है। विपक्ष का दावा है कि यह घोटाला चारा घोटाले से 70 गुना बड़ा है।

यह विवाद उस वक्त और गहरा गया जब कांग्रेस और राजद ने इस रिपोर्ट के आधार पर नीतीश सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार सरकार ने कई विभागों को दी गई राशि की उपयोगिता प्रमाण पत्र (UC) तय समय में जमा नहीं की। नियमों के अनुसार, यह रिपोर्ट राशि मिलने के 18 महीने के अंदर जमा करनी होती है।

📊 किस विभाग में कितनी राशि की UC लंबित?

पंचायती राज विभाग – ₹28,154 करोड़

शिक्षा विभाग – ₹12,623 करोड़

शहरी विकास विभाग – ₹11,065 करोड़

ग्रामीण विकास विभाग – ₹7,800 करोड़

कृषि विभाग – ₹2,107 करोड़

⚠️ विपक्ष का आरोप: सरकार ने पैसा लुटाया और छिपाया

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने आरोप लगाया कि यह राशि जनता के स्वास्थ्य, शिक्षा और विकास योजनाओं के लिए थी, लेकिन इसका कोई हिसाब नहीं है। वहीं, तेजस्वी यादव ने कहा,

"पहले ये लोग घोटाले करते हैं और फिर लोगों को मछली-मटन-मुसलमान में उलझा देते हैं।"

विपक्ष इसे सीधे तौर पर भ्रष्टाचार का प्रमाण बता रहा है।

🏛️ सरकार का बचाव: यह घोटाला नहीं, सिर्फ प्रक्रिया में देरी

सरकार ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। वित्त विभाग के प्रधान सचिव आनंद किशोर ने कहा,

"यह कोई गबन नहीं है, बल्कि सिर्फ यूसी जमा करने में देरी है।"

उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने विधानसभा में कहा कि वर्ष 2022-23 में 1.09 लाख करोड़ रुपये की UC साफ की गई और 2023-24 में 51,750 करोड़ की रिपोर्ट और जोड़ी गई है। उन्होंने कहा कि:

“हमारी सरकार में पिछले पांच सालों में UC की पेंडेंसी सबसे कम है, जो हमारी पारदर्शिता दिखाती है।”

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🧠 विशेषज्ञों की राय: घोटाला साबित करना होगा मुश्किल

वित्तीय मामलों के जानकारों का मानना है कि UC जमा न होना भ्रष्टाचार का पक्का प्रमाण नहीं होता। यह एक तकनीकी या प्रक्रिया संबंधी समस्या हो सकती है। लेकिन अगर इसका असर योजनाओं पर दिखे, तो जरूर इसकी गहन जांच होनी चाहिए।

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि विपक्ष इसे 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले बड़ा मुद्दा बनाना चाहता है। हालांकि, बिना ठोस सबूत के इसे घोटाला करार देना जल्दबाजी होगी।

आगे क्या होगा?

अब सबकी निगाहें सरकार की कार्रवाई और संभावित जांच पर टिकी हैं। जनता यह जानना चाहती है कि ₹70,000 करोड़ का यह मामला वास्तव में घोटाला है या केवल दस्तावेजी देरी। अगर घोटाले के आरोप साबित होते हैं, तो यह बिहार सरकार की छवि पर बड़ा धब्बा बन सकता है।

वहीं, सरकार की कोशिश है कि जल्द से जल्द उपयोगिता प्रमाण पत्रों की प्रक्रिया पूरी कर विपक्ष के आरोपों को बेअसर किया जाए।

📌 निष्कर्ष:

CAG रिपोर्ट ने नीतीश सरकार की नींद उड़ा दी है और विपक्ष को बड़ा मुद्दा दे दिया है। अब देखना है कि क्या यह घोटाले का रूप लेता है या सिर्फ सियासी तूफान बनकर रह जाता है। जनता की नजरें दोनों पर टिकी हैं।


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