
शार्क टैंक इंडिया सिर्फ़ एक टेलीविजन शो नहीं है, बल्कि यह आज की उद्यमिता (Entrepreneurship) की सबसे बड़ी कहानियों में से एक है। इस शो ने भारत के लाखों युवाओं को यह सिखाया है कि सपने देखना आसान है, लेकिन उन्हें हक़ीक़त में बदलने के लिए साहस, रणनीति और धैर्य चाहिए।
हर एपिसोड में हम देखते हैं कि कैसे एक आम इंसान, कभी छोटे कस्बे से और कभी महानगर से, अपने आइडिया को लेकर मंच पर खड़ा होता है और करोड़ों के सामने अपने विज़न को पेश करता है।
सौदों की दुनिया
शार्क टैंक इंडिया की असली पहचान उसके सौदे हैं। यहाँ पर उद्यमी अपने स्टार्टअप के लिए निवेश मांगते हैं और बदले में इक्विटी (Equity) ऑफर करते हैं।
कभी यह बातचीत बहुत सहज होती है और डील जल्दी फाइनल हो जाती है।
कभी-कभी यह बातचीत इतनी गरम हो जाती है कि उद्यमी को यह महसूस होता है कि निवेश के नाम पर उसकी पूरी कंपनी छिन रही है।
यही वह जगह है जहाँ से ड्रामा शुरू होता है।
ड्रामा का रंगमंच
इस शो की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण उसका ड्रामा है।
एक ओर निवेशक (Sharks) कड़े सवाल पूछते हैं — “तुम्हारी सेल कितनी है?”, “प्रॉफिट कहाँ से आ रहा है?”, “तुम्हारे पास स्केलेबल मॉडल है या नहीं?”
दूसरी ओर उद्यमी अपनी पिच को भावनात्मक और तार्किक दोनों तरीकों से प्रस्तुत करते हैं।
कई बार यह टकराव ऐसा हो जाता है कि दर्शकों को लगता है जैसे कोर्ट रूम ड्रामा चल रहा हो।
‘ना’ कहने की कला
अक्सर लोग सोचते हैं कि निवेश मिल जाना ही सबसे बड़ी जीत है। लेकिन असलियत यह है कि हर डील अच्छी डील नहीं होती।
कभी-कभी निवेशक इतनी सख़्त शर्तें रखते हैं कि उद्यमी को यह महसूस होता है कि पैसे के बदले वह अपनी आज़ादी बेच रहा है।
यहीं पर “वॉक अवे” यानी सौदे से पीछे हटना सबसे समझदारी भरा कदम होता है।
एक उद्यमी ने कहा था: “अगर हर फ़ैसले के लिए मुझे निवेशक से अनुमति लेनी पड़ेगी, तो मैं उद्यमी नहीं रहूँगा, बस एक कर्मचारी बन जाऊँगा।”
कई बार उद्यमी इसीलिए डील को छोड़ देते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि निवेश से ज़्यादा महत्वपूर्ण उनका विज़न और स्वतंत्रता है।
असली कहानियाँ
गौरि (Confect ब्रांड)
उन्हें लगातार Peyush Bansal और Anupam Mittal ने सवालों से घेरा। पर गौरि ने धैर्य रखा और अंततः Namita Thapar से डील हासिल की।
अशुतोष कुमार
उन्होंने सिर्फ़ ₹10 के बदले 1% इक्विटी की पेशकश की। यह भावनात्मक पिच उनके पिता की याद से जुड़ी थी। शार्क्स इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें ₹10 लाख के बदले 4% इक्विटी ऑफर कर दिया।
सावर मल्होत्रा
उन्हें सीज़न 4 में निवेश का ऑफर मिला, लेकिन बाद में उन्होंने डील छोड़ दी क्योंकि निवेशक की शर्तें उनकी आज़ादी पर भारी पड़ रही थीं।
सीज़न 5 की हलचल
अब तक शार्क टैंक इंडिया के मंच पर ₹293 करोड़ से ज़्यादा का निवेश हो चुका है।
सीज़न 5 के लिए नए शार्क्स आने की चर्चा है।
छोटे शहरों से लेकर टेक्नोलॉजी, फूड, फैशन और सोशल एंटरप्राइज जैसे नए आइडियाज पिच होने वाले हैं।
उम्मीद यह भी है कि इस सीज़न में पारदर्शिता और ज़्यादा होगी, ताकि उद्यमी साफ़ देख सकें कि किस सौदे में क्या शर्तें छिपी हैं।

उद्यमियों के लिए सबक
पैसा ही सब कुछ नहीं है – निवेश से ज़्यादा महत्वपूर्ण है सही पार्टनर।
स्वतंत्रता ज़रूरी है – अगर निवेश के बाद उद्यमी अपने फ़ैसले खुद नहीं ले सकता, तो वह असली उद्यमी नहीं रह जाता।
ना कहने का साहस रखो – हर ऑफर स्वीकार करने लायक नहीं होता। सही समय पर पीछे हटना भी जीत की तरह है।
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जयपुर मे सोने और चां...
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