प्रियंका गांधी का NDA पर वार: कहा – ‘बिहार में सरकार बनाना चाहती है NDA, लेकिन जनता के वोट से नहीं, वोट चोरी से’
- byAman Prajapat
- 05 November, 2025
बिहार की राजनीति में इस वक्त माहौल बेहद गर्म है। चुनावी बिगुल बज चुका है और मैदान में हर नेता अपनी पूरी ताकत झोंक रहा है। इस बीच कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने पटना की धरती से एनडीए (NDA) पर ऐसा हमला बोला है जिसने पूरे चुनावी परिदृश्य में हलचल मचा दी है। उन्होंने खुलकर कहा –
“NDA को अब जनता का भरोसा नहीं रहा। इसलिए वे अब वोट चोरी की तैयारी में हैं। मगर बिहार की जनता उनकी ये चाल कभी सफल नहीं होने देगी।”
प्रियंका गांधी का यह बयान बिहार के चुनावी रण में एक नए राजनीतिक तूफान की तरह उभरा है। जिस मंच से उन्होंने यह कहा, वहाँ भीड़ उमड़ी हुई थी – युवा, महिलाएं, किसान, और कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश देखते ही बनता था। उनके हर वाक्य पर भीड़ “जय बिहार” के नारों से गूंज रही थी।
उन्होंने कहा कि “आज बिहार के लोग बदलाव चाहते हैं। वो झूठे वादों और खोखले भाषणों से थक चुके हैं। उन्हें रोजगार चाहिए, शिक्षा चाहिए, और एक ईमानदार सरकार चाहिए, जो जनता के भरोसे चले, चोरी से नहीं।”
प्रियंका गांधी ने अपने भाषण में बीजेपी और नीतीश कुमार दोनों पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि “नीतीश कुमार बार-बार अपनी पार्टी, अपने विचार और अपने वादे बदलते हैं। उन्हें कुर्सी प्यारी है, जनता नहीं।” उन्होंने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि “बीजेपी लोकतंत्र को अपनी जेब में रखना चाहती है। उन्हें लोगों की नहीं, सत्ता की चिंता है।”
कांग्रेस महासचिव ने जनता से भावनात्मक अपील की:
“आपका वोट सिर्फ एक बटन नहीं, आपकी ताकत है। ये ताकत किसी को चुराने मत देना। अगर आज आपने चुप्पी साध ली, तो कल आपकी आवाज़ कोई और इस्तेमाल करेगा।”
उन्होंने आगे कहा कि बिहार के लोग हमेशा से सच के पक्ष में खड़े रहे हैं। चाहे स्वतंत्रता संग्राम हो या भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन — बिहार ने हमेशा देश को राह दिखाई है।
“और इस बार भी बिहार झूठ, धोखे और चोरी के खिलाफ खड़ा होगा। बिहार सच बोलेगा, बिहार इंसाफ करेगा।”
सभा में प्रियंका गांधी ने युवाओं से खासतौर पर जुड़ने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि “आपके हाथों में मोबाइल है, लेकिन रोजगार नहीं। आपके पास डिग्री है, लेकिन अवसर नहीं। क्योंकि जो सरकार आपके नाम से वोट मांगती है, वो आपके भविष्य से खेल रही है।”
प्रियंका गांधी का भाषण महज़ राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं था — उसमें एक भावनात्मक अपील भी थी। उन्होंने कहा कि “जब एक गरीब मां अपने बेटे को नौकरी न मिलने के कारण शहर भेजती है, तो उसका दिल रोता है। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों के दिल में अब संवेदना नहीं बची।”

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी परोक्ष रूप से कटाक्ष किया, कहा कि “देश में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले नेता जब बिहार आते हैं, तो याद नहीं रहता कि यहाँ की सड़कें टूटी हैं, अस्पतालों में दवाइयाँ नहीं हैं, और युवाओं के पास काम नहीं है।”
प्रियंका गांधी ने यह भी कहा कि कांग्रेस और INDIA गठबंधन बिहार को एक नए रास्ते पर ले जाना चाहता है — “जहाँ राजनीति में नफरत नहीं, नीयत साफ़ हो। जहाँ सत्ता नहीं, सेवा मकसद हो।”
सभा के अंत में उन्होंने जनता से कहा:
“इस बार डरिए मत, बिकिए मत, झूठे वादों में आइए मत। बिहार की आत्मा को बचाइए। लोकतंत्र को बचाइए। आपका एक वोट भविष्य बदल सकता है।”
इस बयान के बाद बिहार के राजनीतिक गलियारों में भूचाल आ गया है। बीजेपी नेताओं ने प्रियंका गांधी के आरोपों को “झूठ का पुलिंदा” बताते हुए कहा कि कांग्रेस हार के डर से “वोट चोरी” जैसे शब्दों का सहारा ले रही है। वहीं जेडीयू ने भी इसे कांग्रेस की “निराशा की भाषा” बताया।
लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रियंका गांधी का यह बयान एक रणनीतिक दांव है। कांग्रेस बिहार में एक बार फिर अपनी जमीन तलाश रही है, और प्रियंका को इस अभियान का चेहरा बनाकर पार्टी जनता के दिल तक पहुंचने की कोशिश कर रही है।
प्रियंका का यह भाषण भावनाओं, गुस्से और उम्मीद — तीनों का संगम था। उनके शब्दों में एक जनसंघर्ष की झलक थी, जो पुराने दौर की कांग्रेस की राजनीति की याद दिलाती है — जब नेताओं की बात सीधी जनता के दिल तक उतरती थी।
अब देखना यह है कि बिहार की जनता इस ‘वोट चोरी’ वाले आरोप पर क्या प्रतिक्रिया देती है।
क्या प्रियंका गांधी का यह आक्रामक रुख कांग्रेस के लिए नई ऊर्जा लाएगा,
या एनडीए इसे एक “राजनीतिक ड्रामा” बताकर लोगों के बीच भ्रम पैदा करने में सफल होगा?
एक बात तो तय है —
बिहार का चुनाव अब सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, विश्वास और सच्चाई की जंग बन गया है।
जहाँ एक तरफ एनडीए अपनी ताकत और पुराने वोट बैंक पर भरोसा कर रहा है,
वहीं प्रियंका गांधी जैसी नई राजनीतिक आवाज़ें जनता को याद दिला रही हैं कि लोकतंत्र सिर्फ चुनाव जीतने का नाम नहीं, बल्कि जनता की इच्छा का सम्मान है।
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