भारत और रूस: पांच और S-400 वायु रक्षा प्रणालियाँ खरीदने की वार्ता
- byAman Prajapat
- 06 October, 2025

विस्तृत रिपोर्ट
परिचय
हवा में घनी काली बादलों की तरह, दक्षिण एशिया की रणनीतिक स्थिति और रक्षा चुनौतियों ने भारत को मजबूर किया है कि वह अपनी वायु रक्षा क्षमताओं को पहले से भी अधिक गहनता से तैयार करे। इसी पृष्ठभूमि में भारत और रूस फिर से S-400 वायु रक्षा प्रणालियों के एक नए सौदे को लेकर बातचीत में हैं।
पृष्ठभूमि — पहले का सौदा और उससे सबक
2018 का पहला सौदा
भारत और रूस ने अक्टूबर 2018 में लगभग 5.43 अरब डॉलर की कीमत पर पाँच S-400 ट्रायम्फ प्रणालियाँ खरीदने का समझौता किया।
उस समय यह फैसला अमेरिका की चेतावनियों और CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) अधिनियम की आशंकाओं के बावजूद लिया गया था, जिसके अंतर्गत रूस से हथियार खरीदने पर अमेरिका प्रतिबंध लगा सकता था।
डिलीवरी की देरी
सौदे की डिलीवरी में देरी हुई है — आखिरी दो यूनिटों की सप्लाई 2026–2027 में अपेक्षित है।
रूस ने खुद कहा है कि नवीन सप्लायर समझौते पर वार्ता जारी है।
निष्कर्ष और औपचारिक अनुभव
जब पहली डिलीवरी की देरी हो सकती है, तो दूसरी खरीद में सावधानी बरतना अनिवार्य होगा। तकनीकी हस्तांतरण, रखरखाव, कार्यक्रममा भागीदारी — ये सब पहले के अनुभव से सीखने लायक बिंदु हैं।
वर्तमान वार्ता: क्या पता चला है?
नीचे उन बिंदुओं का संकलन है जो सार्वजनिक स्रोतों में उपलब्ध हैं:
रूस ने आधिकारिक रूप से कहा है कि वह भारत के लिए अतिरिक्त S-400 प्रणालियों की आपूर्ति पर बातचीत कर रहा है।
भारतीय मीडिया सूत्र बता रहे हैं कि यह सौदा संभवतः तीन प्रणालियाँ सीधे खरीदने और दो प्रणालियाँ भारत में निर्माण या तकनीकी हस्तांतरण के साथ हो सकती हैं।
यह सौदा संभवतः दिसंबर में होने वाली रूस की प्रधानमंत्री पुतिन की यात्रा के दौरान वार्ता की मेज़ पर आएगा।
साथ ही, भारत S-500 (उन्नत अगली पीढ़ी वायु रक्षा प्रणाली) की भी संभावना पर विचार कर रहा है।
सूत्रों का कहना है कि भारत इस बार स्थानीय मरम्मत केंद्र, लॉजिस्टिक्स सपोर्ट, और मिसाइल स्टॉक में वृद्धि पर विशेष ध्यान देगा।

तर्क और अधोसंरचना चुनौतियाँ
विषय | विवरण | सावधानियाँ / चुनौतियाँ |
---|---|---|
रणनीतिक तर्क | भारत को उत्तरी सीमाओं, समुद्री सीमाओं और नाकाबंदी स्थितियों में मजबूत वायु रक्षा कवच की ज़रूरत है। वर्तमान S-400 प्रणाली का प्रदर्शन सकारात्मक रहा है — इसे “Operation Sindoor” जैसे हालिया अभियानों में उपयोग किया गया। | सीमित संसाधन, वित्तीय दबाव और निर्यात प्रतिबंध |
तकनीकी हस्तांतरण | भारत चाहता है कि इस सौदे में अधिक स्थानीय उत्पादन, रखरखाव केंद्र, स्पेयर्स, और लॉजिस्टिक्स भाग शामिल हों। | रूस की ओर से तकनीकी और संवेदनशील जानकारी साझा करने में सीमाएं हो सकती हैं |
डिलीवरी और समयसीमा | पिछली डिलीवरी में देरी हुई थी; इस बार समयबद्धता महत्वपूर्ण होगी | युद्ध, राजनीतिक दबाव या संसाधन संकट कारण देरी हो सकती है |
अंतरराष्ट्रीय दबाव | अमेरिका और अन्य नाटो-संयुक्त देशों की आशंकाएँ हो सकती हैं, विशेषकर CAATSA या अन्य प्रतिबंधों के मोर्चे पर | भारत को सावधानीपूर्वक कूटनीतिक संतुलन करना होगा |
खुद की रक्षा परियोजनाएँ | भारत “Project Kusha” नामक स्वदेशी लंबी दूरी की वायु रक्षा मिसाइल विकास कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है। | यह परियोजना अभी विकासाधीन है, समय और संसाधन दोनों की चुनौती |
क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव
चीन और पाकिस्तान की नज़र में यह कदम चुनौतीपूर्ण संदेश भेजता है — यह भारत की वायु रक्षा मजबूती को दिखाता है।
रूस–भारत संबंधों को नया ऊर्जा मिलेगा। दोनों देशों के बीच रक्षा, ऊर्जा, और भू-राजनीति का गठजोड़ और गहरा हो सकता है।
अमेरिका और पश्चिमी देशों पर यह दबाव बढ़ाएगा कि वे भारत को अंतरराष्ट्रीय मानकों के भीतर बांधे रखें, विशेष रूप से सैन्य सौदों में।
इस सौदे से भारत को रक्षा स्वावलंबन की दिशा में एक और कदम मिल सकता है, बशर्ते स्थानीय उत्पादन और तकनीकी भागीदारी हो सकें।
क्या यह सौदा सफल हो सकता है?
जमीनी हकीकत यह है कि सफलता इस पर निर्भर करेगी कि भारत और रूस कितनी पारदर्शिता, समयनिष्ठा, और संतुलन (राजनीतिक, आर्थिक, तकनीकी) से इस सौदे को आगे बढ़ा पाते हैं।
अगर भारत ने अपनी घरेलू क्षमताओं को साथ में पंख दिया— जैसे कि Project Kusha को बढ़ाना, स्पेयर्स और रखरखाव पर भरोसा बढ़ाना — तो यह सौदा सिर्फ एक वायु रक्षा खरीद नहीं, बल्कि एक सामरिक साझेदारी बनने की दिशा में एक मजबूत कदम हो सकता है।
निष्कर्ष
इस नए सौदे की दिशा और सफलताएँ हमें यह दिखाती हैं कि रक्षा क्षेत्र में आज की दुनिया में “सिर्फ़ खरीद” करना ही पर्याप्त नहीं — साझेदारी, आत्मनिर्भरता और रणनीतिक संतुलन भी ज़रूरी हैं।
भारत और रूस की यह वार्ता, अगर बुद्धिमानी से आगे बढ़ाई जाए, तो यह भारत की वायु रक्षा क्षमताओं में छलांग लगा सकती है — लेकिन इसके लिए बहुत मेहनत, स्पष्टता और सावधानी की ज़रूरत होगी।
Note: Content and images are for informational use only. For any concerns, contact us at info@rajasthaninews.com.
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