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भारत को 2070 तक तापमान वृद्धि के कारण GDP का लगभग 24.7 % तक नुकसान हो सकता है: Asian Development Bank रिपोर्ट

भारत को 2070 तक तापमान वृद्धि के कारण GDP का लगभग 24.7 % तक नुकसान हो सकता है: Asian Development Bank रिपोर्ट

यूरोपीय यूनियन के एक शीर्ष अधिकारी ने हाल ही में चेतावनी दी है कि अगर जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पर तत्काल और ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो भारत को साल 2070 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 24.7% तक नुकसान उठाना पड़ सकता है।

🌡️ एक धीरे-धीरे पकती आग — Climate Change का आर्थिक असर

पृथ्वी का तापमान बढ़ना अब कोई थ्योरी नहीं रहा, ये एक हकीकत है जो हर भारतीय महसूस कर रहा है —
कभी दिल्ली की झुलसाती गर्मी में, कभी केरल की बाढ़ में, तो कभी बिहार की असमय बरसात में।

रिपोर्ट के मुताबिक, अगर ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा में नहीं रोका गया, तो भारत जैसे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा प्रहार होगा।
भारत जैसे देशों के लिए यह सिर्फ मौसम नहीं, अर्थव्यवस्था की जड़ों को हिलाने वाली आपदा है।

ADB (Asian Development Bank) और EU (European Union) के विशेषज्ञों के अनुसार,

“Climate change is not just about melting ice — it’s about melting economies.”

भारत की GDP में यह गिरावट कई कारणों से होगी —
तटीय क्षेत्रों का डूबना, कृषि उत्पादकता का घटना, स्वास्थ्य और श्रम उत्पादकता में गिरावट, और उद्योगों पर सीधा असर।

📉 GDP का नुकसान इतना बड़ा क्यों?

सोचो, अगर भारत का GDP 2070 तक अनुमानित ₹700 ट्रिलियन तक पहुँचने वाला था, तो 24.7% का नुकसान मतलब करीब ₹170 ट्रिलियन की सीधी चपत
यानी, जितनी बड़ी हमारी पूरी “Digital India” या “Make in India” इकोनॉमी है, उतनी रकम उड़ सकती है सिर्फ इस वजह से कि हमने तापमान को गंभीरता से नहीं लिया।

🌊 तटीय इलाकों में बढ़ता खतरा

भारत की तटरेखा करीब 7,500 किलोमीटर लंबी है।
इन इलाकों में मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, विशाखापट्टनम, और कोचीन जैसे शहर हैं — जो भारत की औद्योगिक और व्यापारिक रीढ़ हैं।

EU के पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि समुद्र स्तर 2070 तक औसतन 0.5 मीटर तक बढ़ सकता है, जिससे लाखों लोग विस्थापित होंगे, और अरबों डॉलर का नुकसान होगा।
केवल मुंबई और कोलकाता में ही, हर साल बाढ़ से होने वाला आर्थिक नुकसान ₹1 लाख करोड़ तक पहुँच सकता है।

🌾 कृषि — सबसे बड़ा झटका झेलने वाला क्षेत्र

भारत की 45% आबादी आज भी खेती पर निर्भर है।
Climate change का सबसे सीधा असर इसी क्षेत्र पर पड़ेगा।
बारिश का पैटर्न बदल रहा है, मिट्टी का तापमान बढ़ रहा है, और फसलों का सीजन अस्थिर हो रहा है।

रिपोर्ट कहती है कि अगर तापमान बढ़ता रहा, तो धान, गेहूं, और मक्का जैसी प्रमुख फसलें 20-30% तक घट जाएँगी
इसका मतलब है — कम उपज, ज्यादा कीमतें, और ग्रामीण गरीबी में भारी उछाल।

एक किसान का बयान इस सबका सार कह देता है —

“अब मौसम भगवान नहीं, दुश्मन लगने लगा है।”

🧍‍♂️ श्रम उत्पादकता — पसीने से निकलेगी अर्थव्यवस्था की जान

भारत जैसे देशों में काम करने वालों की बड़ी संख्या निर्माण, खेती, और फैक्ट्री जैसे सेक्टर्स में है।
ये सारे सेक्टर “आउटडोर” हैं, जहाँ तापमान बढ़ने का मतलब है काम के घंटे घट जाना।

विश्व श्रम संगठन (ILO) के आंकड़ों के अनुसार, अगर हीटवेव ट्रेंड ऐसे ही चलता रहा, तो भारत में 2030 तक 34 मिलियन फुल-टाइम जॉब्स का नुकसान होगा।
अब सोचो — 2070 तक ये आंकड़ा कितना बढ़ेगा?

श्रमिकों की उत्पादकता गिरने का मतलब है — उद्योग की गति धीमी, निवेश में कमी, और अंततः GDP पर भारी असर।

🏭 उद्योगों और शहरों पर Climate का प्रहार

भारत के मेट्रो शहर जैसे दिल्ली, मुंबई, और हैदराबाद पहले से ही “Urban Heat Island Effect” झेल रहे हैं।
अत्यधिक गर्मी, प्रदूषण और जल संकट के कारण उद्योगों को लगातार अतिरिक्त लागत झेलनी पड़ रही है।

रिपोर्ट बताती है कि औद्योगिक उत्पादन में हीटवेव के कारण हर साल औसतन 2.3% की गिरावट दर्ज हो रही है, जो आने वाले दशकों में तीन गुना तक हो सकती है।
Power Sector, Manufacturing, Textiles और Construction जैसे सेक्टर सबसे अधिक प्रभावित होंगे।

🧭 भारत के सामने दो रास्ते

भारत आज एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है जहाँ से दो रास्ते निकलते हैं —
एक रास्ता “Growth Without Green”, दूसरा “Green Growth।”

अगर भारत पुराने ढर्रे पर चलता रहा — कोयले, पेट्रोलियम, और जंगलों की कटाई पर निर्भर — तो GDP का यह नुकसान तय है।
लेकिन अगर आज Renewable Energy, Sustainable Agriculture, और Smart Infrastructure पर ध्यान दिया गया, तो भारत न सिर्फ अपने नुकसान को घटा सकता है, बल्कि दुनिया के लिए एक मिसाल बन सकता है।

EU के अधिकारी का बयान यहीं सबसे महत्वपूर्ण है —

“India has both — the problem and the potential. The choice will decide its future.”

India faces GDP loss of up to 24.7% by 2070 due to climate change: EU  official : r/unitedstatesofindia

🧠 नीति-निर्माताओं के लिए चेतावनी की घंटी

भारत सरकार ने COP28 और COP29 सम्मेलनों में 2070 तक “Net Zero” उत्सर्जन का लक्ष्य तय किया है।
पर सवाल ये है — क्या ये लक्ष्य सिर्फ कागज पर रह जाएगा या ज़मीन पर उतरेगा?

रिपोर्ट साफ कहती है कि भारत को अगले 10 सालों में ही अपने ऊर्जा ढांचे, शहर नियोजन, और पर्यावरण नीति में बड़ा बदलाव करना होगा।
नहीं तो आर्थिक विकास की जो गाड़ी चल रही है, वो जलवायु की दीवार से टकरा जाएगी।

⚖️ अंतरराष्ट्रीय सहयोग की ज़रूरत

EU के अधिकारी ने कहा कि ये सिर्फ भारत की समस्या नहीं, बल्कि दुनिया की ज़िम्मेदारी है।
क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था का 24.7% हिस्सा गिरने का मतलब है — वैश्विक सप्लाई चेन का टूटना, व्यापार में गिरावट, और करोड़ों लोगों की आजीविका पर असर।

उन्होंने विकसित देशों से आग्रह किया कि वो “Climate Finance” और “Technology Transfer” में ईमानदारी दिखाएँ।
क्योंकि अगर भारत डूबा, तो बाकी दुनिया तैर नहीं पाएगी।

🌱 आशा की किरण — Green India की दिशा

फिर भी उम्मीद बाकी है।
भारत Renewable Energy में दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते देशों में है।
Solar Mission, Electric Mobility, और Smart Farming जैसे प्रोजेक्ट्स से अब बदलाव दिखने लगा है।

अगर ये गति बनी रही, तो भारत उस दिशा में जा सकता है जहाँ GDP गिरने के बजाय बढ़े — और वो भी “ग्रीन” रास्ते से।

🕊️ निष्कर्ष — भविष्य का फैसला आज होगा

2070 बहुत दूर लगता है, पर वो भविष्य आज के फैसलों में लिखा जा रहा है।
अगर आज भी “development” और “environment” को अलग-अलग देखा गया, तो न तो विकास बचेगा, न पर्यावरण।

भारत के लिए ये 24.7% GDP लॉस सिर्फ एक आर्थिक आंकड़ा नहीं — ये एक चेतावनी है कि

“अगर धरती गर्म होगी, तो जेब ठंडी पड़ेगी।”

वक्त अब या कभी नहीं का है —
या तो भारत इस आग को काबू करेगा,
या फिर यह आग हमारी मेहनत, हमारी मिट्टी, और हमारी अर्थव्यवस्था को राख बना देगी।


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