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हजरतबल दरगाह विवाद: अशोक चिह्न पर उमर अब्दुल्ला का सवाल, महबूबा मुफ्ती ने दिया समर्थन

हजरतबल दरगाह विवाद: अशोक चिह्न पर उमर अब्दुल्ला का सवाल, महबूबा मुफ्ती ने दिया समर्थन

हजरतबल दरगाह बवाल: अशोक चिह्न लगाने की मजबूरी पर उमर अब्दुल्ला का सवाल, महबूबा मुफ्ती ने भी मिलाया सुर

श्रीनगर | 6 सितम्बर 2025 — जम्मू-कश्मीर की हजरतबल दरगाह में लगे अशोक चिह्न को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। कट्टरपंथी भीड़ ने दरगाह की उद्घाटन पट्टिका पर लगे अशोक चिह्न को पत्थरों से तोड़ दिया। घटना ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और विपक्षी पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती के बयान चर्चा में हैं।

उमर अब्दुल्ला का बयान

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने घटना पर सवाल उठाते हुए कहा—

“उस पत्थर पर राष्ट्र चिह्न लगाना चाहिए था या नहीं, यह पहले सवाल बनता है। मजहबी चीज में अशोक चिह्न लगाने की क्या मजबूरी थी। दरअसल, उस पत्थर को लगाना ही नहीं चाहिए था।”

महबूबा मुफ्ती का समर्थन

विपक्षी पार्टी पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने भी उमर अब्दुल्ला की लाइन का समर्थन किया। उन्होंने कहा—

“अगर गुस्ताखी की जाएगी तो लाजमी है कि हमें गुस्सा आता है। भावनाएं उमड़ जाती हैं। यह कहना सही नहीं कि जिन्होंने भावनाओं में बहकर तोड़फोड़ की वे आतंकवादी हैं। उन्हें सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार करना ठीक नहीं होगा।”

महबूबा ने आगे कहा कि जिम्मेदार लोगों, खासतौर पर वक्फ बोर्ड पर धारा 295-ए (धार्मिक भावनाएं भड़काने) के तहत कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि धार्मिक स्थल पर ऐसा करना “कुफ्र (पाप)” है।

विवाद की पृष्ठभूमि

घटना हजरतबल दरगाह, श्रीनगर की है, जो कश्मीर की आस्था का प्रमुख केंद्र है।

उद्घाटन पट्टिका में राष्ट्रचिह्न (अशोक चिह्न) लगाए जाने का कुछ संगठनों ने विरोध किया।

विरोध के बाद भीड़ ने चिह्न को निशाना बनाते हुए तोड़फोड़ की।

राजनीतिक असर

इस विवाद पर सत्ता और विपक्ष दोनों के सुर लगभग एक जैसे रहे, जिससे चर्चा तेज हो गई है।

'अशोक चिह्न लगाने की क्या मजबूरी...' हजरतबल दरगाह बवाल पर बोले उमर अब्दुल्ला
श्रीनगर में हजरतबल दरगाह में अशोक चिह्न को उपद्रवियों ने पत्थर मारकर तोड़ डाला.

उमर अब्दुल्ला ने इसे “अनावश्यक कदम” बताया।

महबूबा मुफ्ती ने भीड़ का बचाव करते हुए प्रशासन और वक्फ बोर्ड पर जिम्मेदारी डाल दी

📌 निष्कर्ष: हजरतबल दरगाह पर अशोक चिह्न को लेकर हुआ विवाद सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि अब राजनीतिक मुद्दा भी बन गया है। सरकार और विपक्ष दोनों की प्रतिक्रियाओं ने बहस को और तीखा कर दिया है।


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