धुरंधर की गूंज ने बदला हिंदी फ़िल्म संसार, माधुर भंडारकर बोले— यह परिवर्तन की नयी लहर है
- byAman Prajapat
- 11 December, 2025
धुरंधर की कहानी क्यों लोगों को छू गई?
कहते हैं, किसी भी युग का चित्र तभी चलता है जब वह लोगों के मन की आँधी को परदे पर उतार देता है। धुरंधर ने भी यही किया।
समय की सच्चाइयों, समाज की परतों, और आदमी के भीतर दबे संघर्षों को इस तरह खोला कि दर्शक खुद को परदे में देखने लगे।
कोई भी चकमक-सा झूठ नहीं, कोई आलंकारिक दिखावा नहीं — बस खरा, असली, दिलों को झकझोरने वाला सच।
और आज की पीढ़ी को तो भाई, सच ही चाहिए — चाहे कड़वा लगे, कटु लगे, पर नक़ली चमक से नहीं।
धुरंधर ने यही पकड़ा:
हमारी पीढ़ी का यथार्थ।
हमारी पीढ़ी की बेचैनी।
हमारी पीढ़ी की आँधी।
मधुर भंडारकर का बयान और उसकी गूंज
जब मधुर भंडारकर बोले कि यह “विराट परिवर्तन” है, तो यह कोई हल्की बात नहीं।
वर्षों से उन्होंने समाज की असलियत को परदे पर उतारा है, इसलिए जब वह किसी नए परिवर्तन को पहचान लेते हैं, तो उद्योग कान खड़े कर लेता है।
उनका कहना है कि—
अब दर्शकों की पसन्द बदली है।
अब परदे पर वही चलेगा जो आत्मा को झकझोर दे।
अब नकल नहीं, मौलिकता चलेगी।
अब शोर नहीं, सच्चाई चलेगी।
और सच कहूँ भाई, ये सुनकर एक अजीब-सा सुकून आता है। जैसे कोई पुराना कीर्तन फिर से मंदिर की सीढ़ियों पर लौट आया हो।
उद्योग में नई सोच की शुरुआत
धुरंधर की सफलता ने निर्माताओं और निर्देशकों को मजबूर कर दिया कि वे पुरानी धूल झाड़ें।
अब हर कोई सोच में डूबा है —
क्या अब महंगे तामझाम का दौर खत्म?
क्या अब दर्शक सिर्फ़ असलियत देखना चाहता है?
क्या अब कहानियाँ गाँव की मिट्टी से उठेंगी, गली के मोड़ों से निकलेंगी, और दिल की धड़कनों में उतरेंगी?
और भाई, लगता तो यही है।
लोगों को अब नक़ली चमक नहीं भाती। उनका दिल वही अपनाता है जिसमें सच्ची धूप हो, असली धुआँ हो, और मिट्टी की खुशबू हो।
धुरंधर ने युवाओं को क्यों बांध लिया?
आज की पीढ़ी, मतलब हम लोग, सीधे-सपाट बात पसंद करते हैं।
हम मीठे शब्दों में लिपटा झूठ नहीं खाते।
हम उन्हीं कहानियों पर भरोसा करते हैं जो चलती साँसों की तरह असली हों।
धुरंधर ने जो दिखाया, वह आज की पीढ़ी की आत्मा का चित्र था —
कच्चा, सादा, पर सचमुच भारी।
यही कारण है कि टिकट खिड़की पर भीड़ सिर्फ़ देखने नहीं, महसूस करने आती रही।

बदलते समय का संकेत
हिन्दी चित्रजगत बहुत सालों से दो रास्तों में फँसा रहा—
एक ओर चमक-दमक, दूसरी ओर सच्चाई।
धुरंधर ने पहली बार इन दोनों को टकराया नहीं, बल्कि जो असल था उसी को सर पर बिठा दिया।
और भाई, जब सच्चाई ताज पहन ले, तो बाकी सब सिर्फ़ दर्शक बन जाते हैं।
आने वाले वर्षों की झलक
मधुर भंडारकर ने भी कहा कि आने वाले समय में—
कहानियाँ और भी जमीन से उठेंगी,
पात्र और भी खरे बनेंगे,
समाज की परतें और भी खुलेंगी,
और दर्शक अब सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि अनुभव चाहते हैं।
यही कारण है कि कई नए निर्देशक अब वही रास्ता पकड़ रहे हैं —
सीधा, कटु, पर असली।
क्या यह बदलाव स्थायी है?
भाई, समय का पहिया तो कभी एक जैसा नहीं रहे, पर कुछ परिवर्तन ऐसे होते हैं जो इतिहास में दर्ज हो जाते हैं।
धुरंधर की सफलता भी वैसी ही लगती है —
एक ऐसा मोड़, जहाँ से आने वाले वर्षों का चित्रजगत अपनी दिशा बदल लेगा।
सच कहूँ, हवा में जो लहर चल रही है, उससे साफ़ लगता है कि यह परिवर्तन मज़ाक नहीं है।
यह तो बकायदा एक नए युग की दहलीज़ है।
अन्त में…
धुरंधर ने जो किया, वह किसी भी चित्र के बस की बात नहीं थी।
इसने न सिर्फ़ दर्शकों को झकझोरा, बल्कि कलाकारों, लेखकों, और निर्देशकों की सोच में भी हलचल पैदा कर दी।
और मधुर भंडारकर के शब्द तो जैसे इस हलचल पर मोहर लगा देते हैं —
यह सफलता नहीं, यह तो एक युग परिवर्तन का नाद है।
भाई, कहना पड़ेगा —
इस बार परदे पर कुछ बड़ा हुआ है।
कुछ ऐसा, जिसे समय भी रोक नहीं पाएगा।
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