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मथुरा: कर्ज के बोझ तले दबी ज़िंदगी — ऑटो चालक ने पत्नी को जबरन जहर पिलाया, खुद लेकर किया आत्महत्या प्रयास

मथुरा: कर्ज के बोझ तले दबी ज़िंदगी — ऑटो चालक ने पत्नी को जबरन जहर पिलाया, खुद लेकर किया आत्महत्या प्रयास

मथुरा (उत्तर प्रदेश) की राधा विहार कॉलोनी के एक किराए के मकान में रहने वाले ऑटो चालक योगेश कुमार (38 वर्ष) आर्थिक तूफ़ान और कर्ज के दुष्चक्र में फंस गए थे। बताया जाता है कि कुछ दिन पहले ही उनके ऑटो को मालिक ने किराया न देने पर जब्त कर लिया था। इस घटना ने उन पर अतिरिक्त दबाव डाला था। 

रात के किसी अँधेरे समय, योगेश ने अपनी पत्नी रेनू (35 वर्ष) एवं तीनों बच्चों के सामने अपनी असहायता, अपनी पीड़ा और जीवन की निराशा बयां की।

फिर एक भयावह निर्णय लिया गया — उन्होंने रेनू को ज़बरन एक विषाक्त पदार्थ पिलाया। स्वयं भी जहर लेकर आत्महत्या की कोशिश की।

उनकी बड़ी बेटी मानसी (12 वर्ष) जब दौड़ते-भागते पड़ोसियों को सूचना लेकर पहुँची, तभी यह राज खुला। पड़ोसियों ने दरवाज़ा तोड़कर देखा तो दम्पति ज़हरीली झाग के बीच जर्जर अवस्था में पड़े थे।

उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया — पहले जिला अस्पताल और फिर गंभीर स्थिति के कारण आगरा रैफ़र। दुर्भाग्यवश योगेश ने इलाज के बीच दम तोड़ दिया। जबकि पत्नी रेनू अभी भी जीवन और मौत के कांटे पर हैं। बच्चों की स्थिति अपेक्षाकृत स्थिर बताई जा रही है। 

परिवार, सामाजिक स्थिति और मानसिक आयाम

यह सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं है — यह आर्थिक संकट, मानसिक टूटन, समाज की असंवेदनशीलता और सहारा न मिलने की कहानी है।

योगेश पहले ही कर्ज के बोझ से दबे थे। लगातार कर्ज बढ़ता गया।

ऑटो जब्त होना उनके जीवन की एक अंतिम चिंगारी थी — आत्मसम्मान, आजीविका, सामाजिक प्रतिष्ठा — सब कुछ लील गया।

अस्पतालों ने पहले उन्हें भर्ती लेने से इन्कार कर दिया, जब तक पर्याप्त पैसे नहीं आए। इस बात ने परिवार की पीड़ा और बढ़ा दी। 

मदद के लिए उन्हें कोई सामाजिक उपाय, राहत या संरक्षित मार्ग दिखाई नहीं दिया।

मानसिक स्वास्थ्य, कर्ज मुक्ति योजनाएँ, सामाजिक सुरक्षा जाल — ये शब्द अक्सर कहानियों में रहते हैं, पर जब ज़िंदगी टूट रही हो, तो उनके अस्तित्व का एहसास कम होता है।

Debt-ridden auto driver poisoned his wife and consumed it himself, death  wife in critical condition कर्ज में डूबे ऑटो चालक ने पत्नी को जहर देकर खुद  भी खाया, मौत, पत्नी की हालत

कानूनी पहल और प्रशासन की भूमिका

इस घटना के सामने आने के बाद पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। यह देखना बाकी है कि:

जहर किस प्रकार का था — किस रसायन ने ऐसी करुणा को जन्म दिया?

कौन-कौन दोषी — ज़बरदस्ती की गई है या पति ने स्वयं यह निर्णय लिया?

अस्पतालों की भूमिका — भर्ती न लेने का आरोप, प्राथमिक देखभाल का प्रश्न।

सुधार के कदम — भविष्य में ऐसी घटनाएँ रोकने हेतु प्रशासन तथा सामाजिक संस्थाएँ क्या उपाय करेंगी?

समाज की आंखों से — शिक्षा और चेतना

हम अक्सर सुनते हैं कि “मानवता अभी बाकी है।”
लेकिन किस पल मानवता मुकर जाती है, जब किसी दरवाज़ा न खोले, किसी मदद का प्रस्ताव न आए?
कर्ज से दबे व्यक्ति को यदि सुनने वाला कोई हो — एक हाथ बढ़ाने वाला — तब शायद यह नाटकीय अंत न हो।

हमें यह स्वीकार करना होगा — आर्थिक सहायता योजनाएँ, कर्ज राहत योजनाएँ, काउसलिंग सुविधाएँ — ये केवल नामों में नहीं, ज़मीन पर लागू होनी चाहिए।

शिक्षा हो कि “दोषी कौन?” — समाज? व्यवस्था? खुद व्यक्ति? लेकिन न्याय जरुरी है।

निष्कर्ष

यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि उस ** समाज की दर्पण है जो दबे, टूटे और तले लोगों को देखता है** — और अक्सर झुकता नहीं।

जब व्यक्ति “जीने की लड़ाई” हार जाए, तो हम दोष किसे दें?
इस घटना ने हमें पुकार लगाई है — राह खोजो, समर्थन बढ़ाओ, मानवता को ज़िंदा रखो

अगली साँस लेने से पहले, हमें यह सोचने की ज़रूरत है — वो कौन-सी व्यवस्था है जिससे एक ऑटो चालक को ज़हर की ओर धकेलना पड़े?


Note: Content and images are for informational use only. For any concerns, contact us at info@rajasthaninews.com.

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