अमृता देवी बिश्नोई: आधुनिक भारत की पहली इको-स्पिरिचुअलिस्ट और पर्यावरण संरक्षण की प्रतीक
- bypari rathore
- 11 September, 2025

अमृता देवी बिश्नोई: आधुनिक भारत की पहली इको-स्पिरिचुअलिस्ट
धरती और पर्यावरण की रक्षा का विचार आज केवल सामाजिक अभियानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की आध्यात्मिक परंपराओं का हिस्सा भी रहा है। प्रकृति और मानव के बीच संतुलन बनाने का यह दर्शन इको-स्पिरिचुअलिटी (Eco-Spirituality) कहलाता है। इसका मूल सिद्धांत है कि मनुष्य और प्रकृति एक ही चेतना का हिस्सा हैं।
भारत की भूमि पर इसका सबसे सशक्त उदाहरण अमृता देवी बिश्नोई के बलिदान में देखने को मिलता है। 1730 में जब जोधपुर के महाराजा ने महलों के निर्माण के लिए खेजड़ी पेड़ों को कटवाने का आदेश दिया, तब बिश्नोई समुदाय ने इसका विरोध किया।
अमृता देवी बिश्नोई ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया। उन्होंने कहा था –
“सर साटे रुंख रहे तो भी सस्तो जाण।”
(अर्थात: यदि पेड़ बचाने के लिए सिर कट भी जाए, तो भी यह सौदा सस्ता है।)
उनके इस बलिदान के बाद सैकड़ों बिश्नोई महिलाओं और पुरुषों ने भी पेड़ों को गले लगाकर अपनी जान दे दी। यह घटना आज चिपको आंदोलन जैसी बाद की पर्यावरणीय पहलों की प्रेरणा बनी।
🌱 अमृता देवी और इको-स्पिरिचुअलिटी
अमृता देवी केवल एक सामाजिक कार्यकर्ता नहीं, बल्कि एक इको-स्पिरिचुअलिस्ट थीं।
उन्होंने यह संदेश दिया कि प्रकृति की रक्षा धर्म और आध्यात्म का हिस्सा है।
उनका बलिदान आधुनिक पर्यावरण आंदोलनों से भी कहीं पहले का है।

✨ निष्कर्ष
अमृता देवी बिश्नोई का बलिदान यह बताता है कि पर्यावरण संरक्षण केवल कानून या अभियान से नहीं, बल्कि चेतना और आध्यात्मिक जुड़ाव से संभव है। वे सही मायनों में आधुनिक भारत की पहली इको-स्पिरिचुअलिस्ट थीं।
Note: Content and images are for informational use only. For any concerns, contact us at info@rajasthaninews.com.
"इको-फ्रेंडली इनोवेश...
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