
जल संकट से खतरे में दुनिया के सबसे बड़े लिथियम भंडार
नई दिल्ली:
दुनिया भर में इलेक्ट्रिक वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के लिए लिथियम की बढ़ती मांग के बीच एक नया संकट सामने आ रहा है - जल संकट। हाल ही में हुए अध्ययन और विशेषज्ञों के अनुसार, लिथियम के सबसे बड़े भंडारों में से एक, चिली और बोलीविया में जल संसाधनों की कमी हो रही है, जो इन क्षेत्रों में लिथियम के उत्पादन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। लिथियम की खनन प्रक्रिया में पानी का अत्यधिक उपयोग होता है, जिससे स्थानीय समुदायों के लिए पानी की उपलब्धता संकट में पड़ रही है।
लिथियम का महत्व और बढ़ती मांग
लिथियम, जो कि बैटरियों के लिए एक प्रमुख घटक है, इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की बढ़ती मांग के साथ अत्यधिक आवश्यक हो गया है। 2040 तक इसकी मांग में 40 गुना तक वृद्धि हो सकती है, जिससे यह भविष्य की ऊर्जा क्रांति का एक अहम हिस्सा बन सकता है।
पानी की भारी आवश्यकता
लिथियम खनन के लिए मुख्य रूप से दो तरीके हैं: पहला, खान से निकालना और दूसरा, नमक के तल से पानी को वाष्पित करके लिथियम को अलग करना। खासकर चिली और बोलीविया में लिथियम का अधिकांश उत्पादन वाष्पीकरण विधि से होता है, जो पानी की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है। यह क्षेत्र पहले से ही सूखा और जल संकट से जूझ रहे हैं, और इस स्थिति का खनन पर गहरा असर पड़ सकता है।
स्थानीय समुदायों पर प्रभाव
लिथियम खनन के कारण जल संसाधनों पर दबाव बढ़ने से इन क्षेत्रों में रहने वाले स्थानीय किसानों और आवासीय समुदायों के लिए पानी की आपूर्ति में कमी आ रही है। इससे उनकी कृषि और जीवनशैली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इसे समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया, तो यह समुदायों के लिए एक बड़ा संकट बन सकता है।
क्या समाधान है?
इस समस्या से निपटने के लिए कुछ नई तकनीकों पर काम किया जा रहा है। डायरेक्ट लिथियम एक्सट्रैक्शन (DLE) जैसे नए तरीकों का विकास किया जा रहा है, जो पानी की खपत को कम करने का वादा करते हैं। इसके अलावा, जल पुनर्चक्रण और स्थानीय जल प्रबंधन योजनाओं को लागू करने की आवश्यकता है ताकि लिथियम के उत्पादन और स्थानीय जल संसाधनों के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके।
निष्कर्ष
दुनिया भर में लिथियम की बढ़ती मांग और जल संकट के बीच, यह जरूरी है कि लिथियम खनन की प्रक्रिया को और अधिक पर्यावरण मित्र और जल-रचनात्मक तरीके से किया जाए। केवल तब ही हम इस संकट से निपटने में सफल हो सकते हैं और साथ ही दुनिया को एक स्वच्छ, हरित और स्थायी ऊर्जा भविष्य प्रदान कर सकते हैं।

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"इको-फ्रेंडली इनोवेश...
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