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रुपया 21 पैसे फिसला, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले खुला 88.40 पर

रुपया 21 पैसे फिसला, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले खुला 88.40 पर

भारत का घरेलू मुद्रा, Indian Rupee (INR), आज सुबह खुलते ही United States Dollar (USD) के मुकाबले 21 पैसे कमजोर होकर 88.40 प्रति डॉलर पर आ गई।

इस गिरावट के पीछे मुख्य कारण हैं:

माह-अंत (month-end) में आयातकों द्वारा डॉलर की तीव्र मांग, जिससे रुपए पर दबाव बढ़ा। 

वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में उछाल, जिससे भारत को अधिक डॉलर में भुगतान करना पड़ता है और मुद्रा पर नकारात्मक असर होता है। 

निवेशक एवं ट्रaders द्वारा आगामी Federal Reserve (अमेरिकी केंद्रीय बैंक) की नीतियों का इंतजार — इसके चलते अस्थिरता बनी हुई है। 

गैर-स्थानीय (NDF) आड़े-तिरछे अन्य वित्तीय उपकरणों में पुराने सौदों की परिपक्वता (maturity) जो रुपए पर अतिरिक्त दबाव बना रही है। 

मामला इस तरह खिंच रहा है कि कारोबारी बाजारों में देख रहे हैं कि रुपये को इस स्तर पर कितना सहारा मिलता है। एक विश्लेषक ने कहा है: “रुपये को फिलहाल 88.40 के करीब मजबूत प्रतिरोध (resistance) दिख रहा है, और समर्थन (support) 87.60-87.70 के आसपास है। अगर ये स्तर टूटे तो 87.20 तक उतरने की संभावना है।” 

मगर यह सिर्फ आंकड़ा नहीं — अर्थव्यवस्था का मूड भी इसमें झलकता है। जब रुपया कमजोर होता है:

आयात महंगा पड़ जाता है → मुद्रा आउटफ्लो बढ़ती है

Rupee rises 51 paise to 86.17 against U.S. dollar in early trade - The Hindu

विदेशी निवेशक (FII) हट सकते हैं या नए निवेश में सक्रमण हो सकता है

अंततः यह मुद्रास्फीति, आयातित कीमतें और घरेलू बाज़ार पर असर डाल सकता है

उदाहरण स्वरूप: आज सुबह खुलते समय रुपया 88.34 पर था और जल्दी ही 88.40 तक गिर गया। 

फिर भी — ध्यान दें — यह गिरावट एक “आगे बढ़ने वाला निरंतर पतन” का संकेत नहीं है, बल्कि कुछ समय-संधि (short-term) के दबाव का परिणाम है। बाज़ार में उम्मीदें हैं कि मध्यम-अवधि में स्थितियाँ सुधर सकती हैं, पर “सावधान रहना” अभी जरूरी है।

इसका मतलब यह हुआ कि यदि घरेलू आर्थिक संकेतक मजबूत बने, आयात नियंत्रित हुआ, कच्चे तेल की कीमतें शांत हुईं, या विदेशी निवेश फिर से गति पकड़ी — तो रुपया फिर से बेहतर स्थिति में आ सकता है।

तो… संक्षिप्त में कहूं तो: आज की यह गिरावट बताती है कि रुपये को चपेट में ले रहे हैं बड़ी-बड़ी बाहरी चुनौतियाँ — अमेरिका की नीति, तेल की कीमतें, आयात-मांग। पर इसका मतलब यह नहीं कि पूरी तरह बेबस हो गया है; बस ‘मजबूती की तलाश’ में है।


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