कानून अपना काम करेगा: के.टी. रामाराव ने कहा – फॉर्मूला ई रेस मामले में वह पूरी तरह कानूनी प्रक्रिया का सामना करेंगे
- byAman Prajapat
- 21 November, 2025
तेलंगाना की राजनीति इन दिनों फॉर्मूला ई रेस के एक विवादित केस के इर्द-गिर्द घुम रही है। इस मामले के केंद्र में हैं बीआरएस (Bharat Rashtra Samithi) के कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मंत्री के.टी. रामाराव (K. T. Rama Rao / KTR)। खबरें और आरोप हैं कि रेस आयोजन में सरकारी धन के अनियमित हस्तांतरण हुआ, जिनकी जांच एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB) द्वारा की जा रही है। रामाराव का कहना है कि उन पर लगे आरोप ‘राजनीतिक मकसद से लगाए गए’ हैं और उन्होंने यह साफ कर दिया है कि वह कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं — “कानून अपना कोर्स लेगा।”
यह मुद्दा न सिर्फ राजनीतिक खींचातानी का है, बल्कि यह उस बड़े सवाल को भी उठाता है कि सरकारी धन का उपयोग मनोरंजन-स्पोर्ट्स इवेंट्स में कैसे किया जाता है, उनमें वित्तीय पारदर्शिता कितनी होती है, और सत्ता परिवर्तन के बाद पुरानी सरकारों की नीतियों की समीक्षा किस हद तक हो सकती है।
पृष्ठभूमि: फॉर्मूला ई रेस का आयोजन और विवाद की शुरुआत
फॉर्मूला ई हाइदराबाद ई-प्रिक्स
फॉर्मूला ई (Formula E) एक विश्व स्तरीय विद्युत वाहन (EV) रेसिंग सीरीज है, जिसे FIA द्वारा संचालित किया जाता है।
तेलंगाना (हैदराबाद) में 2023 में यह रेस आयोजित की गई थी, और यह आयोजन राजनीतिक और आर्थिक दोनों ही मायनों में महत्व रखता था।
उस समय की बीआरएस सरकार ने रेस को बड़ी चमक-दमक के साथ पेश किया था: इसे न सिर्फ एक स्पोर्ट्स इवेंट, बल्कि तेलंगाना को ग्लोबल स्तर पर EV-हब के रूप में स्थापित करने का एक मंच माना गया था।
संभवित वित्तीय अनियमितताएँ
आरोप है कि लगभग ₹ 55 करोड़ (कुछ रिपोर्टों में विदेशी मुद्रा में) का भुगतान Formula E Operations (FEO) नामक कंपनी को किया गया था, जो लंदन-आधारित है।
इस भुगतान को कथित तौर पर अनुमोदन प्रक्रियाओं और सामान्य वित्तीय प्रोटोकॉल के साथ नहीं किया गया: ACB का कहना है कि यह “ले laid-down प्रक्रियाओं का उल्लंघन” है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि यह ट्रांसफर RBI (भारतीय रिज़र्व बैंक) दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर सकता है, क्योंकि विदेशी मुद्रा हस्तांतरण नियमों का पालन नहीं किया गया था।
इसके अलावा, कुछ आरोपों में यह भी कहा गया है कि यह भुगतान उस समय किया गया था जब मॉडल कोड ऑफ कॉन्डक्ट (MCC) लागू था — जिससे यह संदेह पैदा होता है कि राजनीतिक दबाव या चुनाव-सम्बंधित लाभ के लिए यह कदम उठाया गया था।
राजनीतिक बदलाव और जांच की शुरुआत
बीआरएस की सरकार के बाद कांग्रेस सरकार सत्ता में आई, और इस मुद्दे को प्राथमिकता दी गई। यह राजनीतिक पृष्ठभूमि इस पूरे केस की संवेदनशीलता को बढ़ाती है।
कांग्रेस सरकार ने कहा कि पिछली सरकार (BRS) द्वारा यह व्यवस्था की गई थी, और अब जांच करना ज़रूरी है।
गवर्नर जिश्नु देव वर्मा ने ACB को रामाराव के खिलाफ अभियोजन की अनुमति दी।
इसके बाद, ACB ने केस दर्ज किया और रामाराव, साथ ही अन्य वरिष्ठ अधिकारियों (जैसे HMDA इंजीनियर, और आईएएस अधिकारी) पर आरोप लगाए।

रामाराव का जवाब और उनकी रणनीति
उन्होंने आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया
KTR ने बार-बार कहा है कि यह पूरा मामला राजनीतिक प्रतिशोध है।
उनका दावा है कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि वे BRS के एक प्रमुख चेहरा हैं और कांग्रेस उन्हें उनकी सियासी पावर से अलग करना चाहती है।
पूरा सहयोग और कानूनी लड़ाई
रामाराव ने स्पष्ट किया है कि वह ACB और अन्य जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करेंगे।
उन्होंने यह भी कहा है कि वह कानूनी रास्ते अपनाएँगे और अपनी बरखास्तगी का सामना करेंगे।
उन्होंने लाइ-डिटेक्टर टेस्ट की चुनौती भी दी है, यह कहकर कि उनकी ईमानदारी पर उन्हें भरोसा है।
हाई कोर्ट में बहस और अस्थायी राहत
जब ACB ने आरोपों का केस दर्ज किया, तो रामाराव ने हाई कोर्ट में पिटिशन दायर की, जिसमें FIR को खारिज करने की गुहार की गई।
हाई कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी को रोका (interim protection) और कहा कि मामले की जांच जारी रह सकती है, लेकिन गिरफ्तारी फिलहाल नहीं होगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच एजेंसियों को पर्याप्त समय देना चाहिए — सिर्फ़ आरोपों के आधार पर तुरंत गिरफ्तारी या मुकदमा नहीं होना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय का रुख
रामाराव ने FIR को रद्द करने की मांग के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गई।
सुप्रीम कोर्ट ने यह तर्क दिया कि जांच एजेंसी (ACB) को “पर्याप्त समय” देना चाहिए ताकि वह सबूत इकट्ठा कर सके और निष्पक्ष जांच हो सके।
कोर्ट ने रामाराव की याचिका वापस लेने की अनुमति दी, लेकिन यह कहा कि वे अन्य कानूनी उपायों के लिए खुला रास्ता है।
ED की भी चेतावनियाँ और नजर
सिर्फ़ ACB ही नहीं, निगरानी एजेंसियों की अन्य शाखाएँ भी इस मामले में सक्रिय हैं।
एनफोर्समेंट डायरेक्टोरिएट (ED) ने रामाराव को पूछताछ के लिए आमंत्रित किया है।
ED के समन से यह स्पष्ट होता है कि मामला केवल भ्रष्टाचार (corruption) तक सीमित नहीं है, बल्कि विदेशी मुद्रा, वित्तीय लेन-देन, और संभवतः मनी लॉन्ड्रिंग की जांच भी हो सकती है।
राजनीतिक मायने और निहितार्थ
राजनीतिक विरोधी कार्रवाई
कई लोग इसे कांग्रेस द्वारा BRS को कमजोर करने की रणनीति मानते हैं — विशेष रूप से क्योंकि रामाराव BRS में एक ‘नव-पीढ़ी’ चेहरा हैं, और उनकी प्रतिष्ठा राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
कांग्रेस के नेता इसका जवाब देते हैं कि यह सिर्फ़ सत्ता परिवर्तन के बाद की “जांच” है और BRS को जवाब देना चाहिए क्योंकि आरोप गंभीर हैं।
कांग्रेस सांसदों ने यह भी आरोप लगाया है कि रामाराव इस पूरे मामले को प्रतिशोधात्मक राजनीति और जन सहानुभूति पाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
लोकप्रियता और छवि
रामाराव का यह कहना कि वह “ली डिटेक्टर टेस्ट देने को तैयार हैं” उनकी इमेज में निडरता का संदेश देता है — वह यह दिखाना चाहते हैं कि उन्हें अपनी साख पर पूरा भरोसा है।
दूसरी ओर, आलोचक इसे एक नाटकीय प्रदर्शन (theatrics) भी कह रहे हैं — यह सवाल उठता है कि क्या यह बयान केवल जनमत तैयार करने की रणनीति है।
यदि जांच में नतीजे उनके हक में जाते हैं, तो यह उनकी सियासी पावर को और मजबूत कर सकता है; यदि नहीं, तो यह विपक्ष के लिए बड़ा हथियार बन सकता है।
नियमिता और वित्तीय पारदर्शिता
यह केस एक बड़ा दर्शन पेश करता है: क्या राज्य सरकारें बड़े ग्लोबल इवेंट्स (जैसे फॉर्मूला ई) में खुद को शामिल करें, और अगर हां, तो उन खर्चों की निगरानी और जवाबदेही कैसे हो?
फॉर्मूला ई जैसी रेसिंग इवेंट्स महंगे होते हैं और उनमें विदेशी साझेदार होते हैं — ऐसे में लेन-देन की पारदर्शिता, स्वीकृति प्रोटॉकोल, और वित्तीय जिम्मेदारी बहुत अहम होती है।
यह मामला भविष्य में अन्य राज्यों और सरकारों को यह सोचने के लिए प्रेरित कर सकता है कि स्पोर्ट्स इवेंट्स में सार्वजनिक धन का निवेश कैसे किया जाए — और उसकी जांच कैसे सुनिश्चित की जाए।
कानूनी दृष्टिकोण: प्रक्रिया, चुनौतियाँ और आगे का रास्ता
जांच एजेंसियों की भूमिका
ACB (Anti-Corruption Bureau) जांच में प्रमुख भूमिका निभा रही है। उन्होंने FIR दर्ज की है और रामाराव समेत अन्य आरोपियों से पूछताछ कर रहे हैं।
हाई कोर्ट ने उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई है, लेकिन जांच जारी है, जिससे यह संकेत मिलता है कि कोर्ट जांच एजेंसी को जल्दबाजी न करने की सलाह दे रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह रुख अपनाया है कि कोर्ट को जांच के शुरुआती चरणों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, ताकि एजेंसी स्वतंत्र रूप से सबूत जुटा सके।
कानूनी दायित्व और आरोप
FIR में लगाए गए आरोपों में भ्रष्टाचार (Prevention of Corruption Act) की धाराएँ शामिल हैं, साथ ही IPC (भारतीय दंड संहिता) के कुछ प्रावधान भी लागू किए गए हैं।
आरोपों में क्रिमिनल ब्रेच ऑफ ट्रस्ट, क्रिमिनल मिसकंडक्ट, और क्रिमिनल साजिश (conspiracy) शामिल हो सकते हैं, यदि जांच में सबूत ऐसे मिलते हैं।
अगर विदेशी मुद्रा हस्तांतरण नियमों का उल्लंघन हुआ है, तो यह FEMA (Foreign Exchange Management Act) के अंतर्गत भी कानूनी जाँच का विषय हो सकता है, और अगर मनी लॉन्ड्रिंग की आशंका है, तो PMLA (Prevention of Money Laundering Act) की धाराएँ भी लग सकती हैं।
संभावित परिणाम और परिदृश्य
अगर जांच में रामाराव के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिलते हैं, तो मुकदमा चल सकता है, और उन्हें सज़ा भी हो सकती है — लेकिन यह एक लंबी और जटिल कानूनी लड़ाई होगी।
दूसरी संभावना यह है कि सबूत न पर्याप्त हों या वे कानूनी बचाव कर सकें (जैसे यह साबित करना कि उन्होंने प्रक्रियाओं का उल्लंघन नहीं किया या यह नियम विरुद्ध नहीं था), और केस खारिज हो जाए या अपेक्षाकृत हल्के नतीजे सामने आएँ।
एक और रूट यह हो सकता है कि वे राजनीति के ज़रिए इस मुद्दे को जनमत में बदल दें — यानी, जांच का उपयोग एक राजनीतिक हथियार की तरह करें, और जनता में सहानुभूति जुटाएँ।
आगे देखने वाली बात यह होगी कि क्या यह मामला राजनीतिक तनाव को और बढ़ाएगा, या फिर इस घटना के बाद स्पोर्ट्स-इवेंट फंडिंग और निगरानी की नीतियों में सुधार होगा।
निष्कर्ष
के.टी. रामाराव (KTR) और फॉर्मूला ई रेस मामले की कहानी सिर्फ़ एक भ्रष्टाचार जांच नहीं है — यह राजनीति, शक्ति, सार्वजनिक निधि, और ग्लोबल इवेंट्स के संगम की कहानी है। रामाराव ने आवाज़ दी है कि वह निर्दोष हैं, उन्होंने पूरा सहयोग देने का इरादा जताया है और उन्होंने कानूनी लड़ाई के लिए खुला मंच चुना है। दूसरी ओर, आरोप लगा रहे पक्ष का दावा है कि यह केवल सत्ता परिवर्तन का फायदा उठाने की कोशिश है।
“कानून अपना कोर्स लेगा” — यह उनका नारा न केवल आत्मविश्वास दर्शाता है, बल्कि भविष्य के मुकदमे की गहराइयों में कानूनी, राजनीतिक, और वित्तीय सवालों की झड़ी लगती हुई संभावना को भी उजागर करता है।
अगर मैं चाहूँ, तो मैं आने वाली संभावित अदालत की लड़ाइयों, पहले के उदाहरणों (इसे तरह के स्पोर्ट्स-करप्शन मामलों में) और यह कैसे तेलंगाना की राजनीति को प्रभावित कर सकता है — इस पर एक विश्लेषणात्मक लेख लिख सकता हूँ। करना चाहिए क्या?
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जीणमाता मंदिर के पट...
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