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उत्तराखंड में मॉनसून का कहर: गंगा और सरयू नदियाँ खतरे के निशान से ऊपर, कई जिलों में बाढ़ का संकट

उत्तराखंड में मॉनसून का कहर: गंगा और सरयू नदियाँ खतरे के निशान से ऊपर, कई जिलों में बाढ़ का संकट

मौसमी बारिश और बाढ़ की गंभीर स्थिति

How devastating was the recent Himachal Pradesh and Uttarakhand flood? |  Skymet Weather Services
उत्तराखंड में मॉनसून का कहर: गंगा और सरयू नदियाँ खतरे के निशान से ऊपर, कई जिलों में बाढ़ का संकट

हाल ही में उत्तराखंड में मॉनसून की बारिश ने असाधारण 424% अधिक वर्षा रिकॉर्ड की है — पिछले 24 घंटों में औसतन 70.3 mm बारिश हुई, जबकि सामान्य बारिश सिर्फ 13.4 mm होती है।

कई जिलों जैसे बागेश्वर, अल्मोड़ा और उधम सिंह नगर में सामान्य से दस से पंद्रह गुना अधिक बारिश हुई है।

नदियों का बढ़ता जलस्तर और घटनाओं का प्रभाव

गंगा नदी, हरिद्वार और ऋषिकेश में खतरे के निशान से पार कर गंभीर बाढ़ स्थितियों में बह रही है।
सरयू नदी, बागेश्वर (घाट स्टेशन) पर 466.6 मीटर तक पहुँच गई, जो खतरे के निशान से लगभग 1.6 मीटर ऊपर है।

अन्य नदियाँ जैसे आलकनन्दा (रुद्रप्रयाग), सोन (सत्यानारायण), और धौलिगंगा (दोसनी) भी चेतावनी स्तर पार कर चुकी हैं।

फ्लैश फ्लड घटनाएं और आपदा प्रभाव

उत्तरकाशी के धराली गाँव में अचानक आई बाढ़ ने पुलों, घरों और बाज़ारों को बहा दिया है। अब तक कम से कम 5 लोगों की मौत हो चुकी है और 50–100 से अधिक लोग लापता हैं।

इस आपदा के पीछे संभावित कारण क्लाउडबर्स्ट, ग्लेशियल झील का अचानक टूटना, या ग्लेशियर गिरने जैसी घटनाएँ मानी जा रही हैं।

बचाव कार्यों में भारतीय सेना, NDRF, SDRF और जिला प्रशासन सक्रिय रूप से लगे हैं। कई लोगों को बचाया गया है, लेकिन भारी बारिश, भूस्खलन और टूटी सड़कों के कारण रेस्क्यू ऑपरेशन में कठिनाई हो रही है।

अतिरिक्त जानकारी और सावधानियाँ

उत्तराखंड सरकार और IMD ने कई जिलों में स्कूल और आंगनवाड़ी केंद्र बंद कर दिए हैं, जैसे अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चमोली और रुद्रप्रयाग

विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन, पहाड़ी कटाव, अनियंत्रित निर्माण, और कमजोर पर्यावरणीय नीतियाँ उत्तराखंड में आपदाओं की बढ़ती तीव्रता के लिए जिम्मेदार हैं।

निष्कर्ष

उत्तराखंड मौजूदा मॉनसून में बेहद गंभीर बाढ़ की स्थिति से गुजर रहा है। व्यापक बारिश, नदियाँ खतरे के स्तर से ऊपर, और बार-बार आने वाली जलवायु घटनाएं इस ओर इशारा करती हैं कि मानवजनित और प्राकृतिक दोनों कारक इस क्षेत्र को अधिक संवेदनशील बना रहे हैं।

सरकार, बचाव एजेंसियाँ और स्थानीय प्रशासन निरंतर प्रयासरत हैं, लेकिन जनता की ओर से सतर्कता, सहयोग और जागरूकता की आज सबसे अधिक आवश्यकता है।


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