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खोदा पहाड़ और निकला चूहा भी नहीं: Devendra Fadnavis ने Aaditya Thackeray पर बोले-के वो Rahul Gandhi की “पप्पुगिरी” कॉपी कर रहे हैं

खोदा पहाड़ और निकला चूहा भी नहीं: Devendra Fadnavis ने Aaditya Thackeray पर बोले-के वो Rahul Gandhi की “पप्पुगिरी” कॉपी कर रहे हैं

राज्य-सभा की लय में, राजनीति के इस चक्र में कभी-कभी ऐसे वाक्य बजते हैं जो सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि तीखे तीर भी होते हैं। और आज हमने वही देखा।

Devendra Fadnavis — महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री — ने सार्वजनिक रूप से Aaditya Thackeray पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि ठाकरे की जो कोशिशें हैं वो “खोदा पहाड़ और निकला चूहा भी नहीं” जितनी बेअसर हैं। यानी — बड़ी तैयारी, बड़ा दावा, लेकिन परिणाम कुछ खास नहीं। (इस वाक्यांश का प्रयोग अक्सर हिंदी-बोलचाल में किया जाता है, जब किसी प्रयास में दिखावा ज़्यादा हो लेकिन Substance कम हो।)

इसके आगे उन्होंने कहा कि ठाकरे, Rahul Gandhi की ‘पप्पुगिरी’ की नक़ल कर रहे हैं। ‘पप्पुगिरी’ शब्द यहां राजनीतिक व्यंग्य के रूप में इस्तेमाल हुआ है — मतलब वो व्यवहार, वो तरीके, जो दिखावे के लिए हों, गहराई के लिए नहीं। फडणवीस का तर्क है कि ठाकरे सिर्फ मंच पर दिखावा कर रहे हैं, वास्तविक बदलाव नहीं ला रहे।

ये बयान महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया मोड़ लेकर आया है क्योंकि ये सिर्फ दो व्यक्तियों के बीच की बात नहीं रही — यह दल-दल के बीच का संघर्ष भी है। भाजपा और शिवसेना (UBT) के बीच, और कांग्रेस द्वारा अपनाए गए राजनीतिक अंदाज़ पर हमला है।

फडणवीस ने यह भी संकेत दिया है कि राजनीति में “स्टाइल” अधिक हो गई है और “सब्स्टेंस” कम। उन्होंने कहा, “जब आप कुछ दिखाते हो, लेकिन परिणाम नहीं देते, तो लोग कहने लगते हैं खोदा पहाड़…”। यानि जनता को अब सिर्फ भाषण, मंच-प्रदर्शन नहीं चाहिए; उन्हें असर चाहिए।

Nagpur violence - Nagpur violence Aaditya Thackeray says BJP wants to make  Maharashtra the next Manipur - India Today

इस बयान के सामाजिक-राजनीतिक मायने हैं:

यह एक चेतावनी है कि विपक्षी नेताओं को सिर्फ नारे लगाने से काम नहीं चलेगा।

यह संकेत है कि भाजपा अपनी पकड़ के भीतर उन विरोधियों को कमजोर करना चाहती है जो उसे “ब्लैकबॉक्स” समझ रही हैं।

यह जनता के सामने एक आलोचनात्मक सवाल खड़ा करता है — क्या राजनीतिक प्रदर्शन का अर्थ वही रह गया है जो मूल रूप से होना चाहिए था?

साथ-ही-साथ, यह दिखाता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में भाषा-लेप, व्यंग्य और कोप चुनौतियों के रूप में अहम हो गए हैं।

हालाँकि, इस बयान के बाद ठाकरे या उनके दल की प्रतिक्रिया अभी सार्वजनिक रूप से प्रमुख रूप से सामने नहीं आई है (मेरी जानकारी के मुताबिक)। इसलिए आगे क्या होगा, यह देखने की बात है — क्या ठाकरे इस हमले का जवाब देंगे, क्या वह अपनी राजनीति का स्वरूप बदलेंगे, क्या जनता इस बयान को मान लेगी या खारिज करेगी।

तो, जैसा कि हम कहते हैं — राजनीति में शब्द हवा की तरह बहते हैं, लेकिन असर मिट्टी में भी दर्ज होना चाहिए। आज फडणवीस का यह बयान हवा में एक इशारा है: “दिखावा कम करो, काम करो।”


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