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जंगल की दुश्मन बनी वरदान: लैंटाना घास से आदिवासियों ने बनाया रोजगार का नया जरिया

जंगल की दुश्मन बनी वरदान: लैंटाना घास से आदिवासियों ने बनाया रोजगार का नया जरिया

लैंटाना घास से आजीविका का नया रास्ता — जंगल बचाने निकले आदिवासी बने “हरित उद्यमी”

धार / छिंदवाड़ा / 13 अक्टूबर 2025

जिस झाड़ी ने सालों तक जंगलों की हरियाली और भूजल स्तर को निगलने का काम किया,
अब वही लैंटाना घास आदिवासी इलाकों में रोजगार का नया जरिया बन गई है।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के कई वन क्षेत्रों में आदिवासी महिलाएं और युवा अब इस जहरीली लैंटाना झाड़ी से फर्नीचर, सजावटी वस्तुएं (आर्ट पीस), टोकरियां और ईंधन बना रहे हैं — और उन्हें स्थानीय बाज़ारों में बेचकर आजीविका कमा रहे हैं।

🔹 लैंटाना: जंगल की दुश्मन, पर हाथों में अवसर

लैंटाना एक ऐसी विदेशी झाड़ी है जो तेजी से फैलकर स्थानीय पौधों और पेड़ों की वृद्धि को रोक देती है
इसके फैलने से न केवल जंगल का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ता है, बल्कि भूजल स्तर भी नीचे गिरता है क्योंकि यह मिट्टी का पानी सोख लेती है।

पहले यह वन विभाग और किसानों दोनों के लिए मुसीबत थी, लेकिन अब वन ग्राम समितियों और स्थानीय स्व-सहायता समूहों (SHGs) ने इसे कमाई का साधन बना लिया है।

🔹 आदिवासी महिलाओं की “ग्रीन क्राफ्ट क्रांति”

वन विभाग और गैर-सरकारी संगठनों की मदद से कई इलाकों में प्रशिक्षण शिविर लगाए गए हैं,
जहाँ महिलाओं को सिखाया जा रहा है कि इस झाड़ी को काटकर कैसे बाँस जैसी संरचना में बदला जाए।

अब ये महिलाएं कुर्सियां, टेबल, झूले, लैंप, टोकरी और शोपीस बना रही हैं।
एक फर्नीचर सेट की कीमत बाज़ार में ₹1,000 से ₹5,000 तक जा रही है।

स्थानीय बाज़ारों और हाटों में इसकी खूब मांग है — क्योंकि ये सामान पूरी तरह पर्यावरण-अनुकूल (Eco-friendly) और सस्ता है।

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🔹 ईंधन और रोजगार दोनों

लैंटाना के सूखे तनों से लकड़ी जैसा ईंधन तैयार किया जा रहा है, जिससे
रसोई गैस पर निर्भरता कम हो रही है और ग्रामीणों को अतिरिक्त आमदनी मिल रही है।

कई जगहों पर “लैंटाना क्लीन-अप मिशन” चलाया जा रहा है —
जहाँ जंगल से यह झाड़ी हटाने के साथ-साथ उसकी लकड़ी का उपयोग फर्नीचर और हस्तशिल्प में किया जा रहा है।

🔹 वन विभाग की पहल

वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक,

“लैंटाना झाड़ी को हटाने में दो फायदे हैं —
एक, जंगल की मूल वनस्पति फिर से पनपने लगती है;
और दूसरा, ग्रामीणों को रोजगार मिलता है।”

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, और महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाकों में
अब इसे “हरित आजीविका मॉडल” के रूप में विकसित किया जा रहा है।

🔹 पर्यावरण से रोजगार की ओर

इस पहल ने यह साबित कर दिया कि
प्रकृति की समस्या को भी समाधान और आजीविका में बदला जा सकता है।

जहाँ कभी यह झाड़ी जंगल की दुश्मन थी,
आज वही हरियाली और खुशहाली का कारण बन गई है।

📍सारांश:

जहरीली मानी जाने वाली लैंटाना घास अब आदिवासियों के लिए रोज़गार का जरिया बन गई है।
महिलाएं इससे फर्नीचर, आर्ट पीस और ईंधन बनाकर बेच रही हैं।
इससे न सिर्फ पर्यावरण को राहत मिली है, बल्कि सैकड़ों परिवारों को आजीविका भी मिली है।


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