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"20 साल से मां को जंगल में खोजते वाइल्डलाइफ फिल्ममेकर नल्लामुथु, हर फिल्म में मादा टाइग्रेस को बनाया नायिका"

"20 साल से मां को जंगल में खोजते वाइल्डलाइफ फिल्ममेकर नल्लामुथु, हर फिल्म में मादा टाइग्रेस को बनाया नायिका"

📰 समाचार लेख

"जंगलों में मां की ममता की तलाश: नल्लामुथु की 20 साल की साधना, हर फिल्म में टाइग्रेस बनी मां की प्रतीक"

"जंगलों में मां की ममता की तलाश: नल्लामुथु की 20 साल की साधना, हर फिल्म में टाइग्रेस बनी मां की प्रतीक"

नई दिल्ली | 11 मई 2025 — जब अधिकांश वाइल्डलाइफ फिल्ममेकर जंगलों में रोमांच, शिकार और जानवरों की आक्रामकता दिखाने में रुचि रखते हैं, वहीं नल्लामुथु नाम के एक संवेदनशील फिल्म निर्देशक ने पिछले दो दशकों से अपनी हर वाइल्डलाइफ फिल्म के केंद्र में एक ही पात्र को रखा — एक मादा टाइग्रेस, जो उनकी नजर में केवल एक जंगली जानवर नहीं बल्कि "मां" का जीवंत प्रतीक है।

"मां मेरे भीतर इस कदर बसी है..."

नल्लामुथु कहते हैं,

"मां मेरे भीतर इस कदर बसी है कि बचपन में जो स्नेह, संरक्षण और ममता मुझे मिली, उसे अब मैं जंगल-जंगल खोजता फिरता हूं। मुझे मादा टाइग्रेस में वही भावनाएं दिखती हैं — सुरक्षा, त्याग, और बिना शर्त प्रेम।"

यह भावनाएं उनकी फिल्मों में साफ दिखाई देती हैं — चाहे वो 'द क्वीन ऑफ बुंदेलखंड', 'द रॉयल टाइग्रेस', या 'द माउंटेन MAA' हो। उनकी सभी फिल्में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी हैं, जिनमें से अधिकांश को राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

🎥 हर फिल्म में मादा टाइग्रेस लीड रोल में

नल्लामुथु की फिल्मों की खासियत यह रही कि उन्होंने कभी किसी जानवर को सिर्फ "वाइल्ड" या "डेंजरस" नहीं दिखाया। उन्होंने टाइग्रेस को एक संवेदनशील, संघर्षशील और प्रेमपूर्ण मां के रूप में प्रस्तुत किया।
उनकी फिल्मों में टाइग्रेस को बच्चों को पालते, शिकार सिखाते, और यहां तक कि अपने प्राणों की आहुति देते हुए भी दिखाया गया है।

🐯 टाइग्रेस बनी मां की छवि

उनकी फिल्में केवल वाइल्डलाइफ डॉक्यूमेंट्री नहीं बल्कि भावनाओं की गहराई को दर्शाने वाला दस्तावेज हैं। टाइग्रेस जंगल में शिकार करती है, अपने बच्चों को बचाती है, उन्हें जीना सिखाती है — उसी तरह जैसे एक इंसानी मां जीवन की पाठशाला में अपने बच्चों का मार्गदर्शन करती है।

🏆 पुरस्कार और सम्मान

7 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार

3 बार राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित

12 अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग

UNESCO और BBC जैसी संस्थाओं ने उनके काम को सराहा

👁️‍🗨️ दर्शकों से सीधा जुड़ाव

नल्लामुथु की फिल्मों को न सिर्फ पुरस्कारों की झड़ी मिली है, बल्कि दर्शकों के दिलों को भी छुआ है। उन्होंने बताया कि कई दर्शकों ने फिल्में देखने के बाद उन्हें लिखा —

"हमें अब टाइग्रेस को सिर्फ जानवर नहीं, एक मां की तरह देखने की आदत हो गई है।"


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