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बिहार चुनाव खत्म हुआ आज: 2015 और 2020 में एग्जिट पोल्स कितने करीब थे?

बिहार चुनाव खत्म हुआ आज: 2015 और 2020 में एग्जिट पोल्स कितने करीब थे?

भारत के लोकतंत्र की एक पुरानी परिपाटी है — चुनाव, जनता की आवाज, और एग्जिट पोल्स। Bihar की राजनीति में विशेष रूप से ये तीनों पक्ष बड़ी भूमिका निभाते आए हैं। आज जब 2025 का मतदान खत्म हुआ है, तो एक बार फिर चर्चा है — एग्जिट पोल्स कितने भरोसेमंद हैं? पिछले दो मामलों में इनका ट्रैक रिकॉर्ड क्या रहा है?

1. बिहार में एग्जिट पोल्स का इतिहास

एग्जिट पोल्स वो सर्वेक्षण हैं जो वोटिंग के बाद तुरंत मतदान बूथ से निकलने वाले मतदाताओं के जवाबों पर आधारित होते हैं। यह दर्शाता है कि मतदान देने के बाद जनता ने किस दल को वोट किया हो सकता है।  पर यह साफ है कि एग्जिट पोल्स अंतिम परिणाम नहीं होते — बस एक संकेत।

लेकिन इस संकेत की सटीकता हमेशा कम-ज्यादा रही है। बिहार में यह विशेष रूप से सच रहा है।

2. 2015 का लेखा-जोखा

2015 के चुनावों में — (यहाँ संक्षिप्त में) — एग्जिट पोल्स ने पूर्वानुमान लगाया था कि कुछ गठबंधनों को बढ़त मिलेगी। बाद में वास्तविक परिणाम में कुछ मतदाता व्यवहार ने विरोध में काम किया। (प्रत्यक्ष डेटा स्रोत सीमित है इस लेख में.)

3. 2020 का लेखा-जोखा

2020 में एग्जिट पोल्स पर विशेष नजर थी क्योंकि पहले तर्क हो गया था कि पिछली बार उन्होंने कम काम किया था। लेख में एक विश्लेषण है कि कैसे अधिकांश एग्जिट पोल्स ने यह अनुमान लगा लिया था कि Mahagathbandhan (मिलजुल कर विकल्प) या विपक्षी गठबन्धन आगे होगा, लेकिन वास्तविक परिणाम में National Democratic Alliance (एनडीए) ने बढ़त ली। 

उदाहरण के तौर पर:

सर्वेक्षण एजेंसियों ने एनडीए को 104-128 सीट्स का अनुमान दिया, विपक्ष को भी लगभग उतना ही।  

वास्तविक परिणाम में एनडीए को 125 सीटें मिली थीं, विपक्ष को 110।  

वोट शेयर में फर्क मात्र 0.03 % था — बहुत-बहुत कम।  

तो यह देखा जा सकता है कि एग्जिट पोल्स ने लगभग सही दिशा दिखाई थी--लेकिन सीट-संख्या में जो अनुमान था वह पूरी तरह सही नहीं हुआ।

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4. 2025 के संदर्भ में क्या बदल रहा है

अब 2025 में जब मतदान समाप्त हो गया है, संकेत मिल रहे हैं कि स्थिति पहले से और अधिक जटिल हो गई है। वोटरों की प्राथमिकताएं बदल रही हैं, गठबंधनों की राजनीति बदल रही है। 

मीडिया एजेंसियों द्वारा जारी एग्जिट पोल्स आज शाम अनुमानित हैं। 

लेकिन चेतावनी यह है कि पिछले अनुभव दिखाते हैं कि “पार्श्व-लक्षित बदलाव” (latent change) एग्जिट पोल्स में पकड़ नहीं पाते।

इसलिए बाहर निकलने वाला आंकड़ा संकेत है, मुकम्मल सच नहीं।

5. क्यों एग्जिट पोल्स चूक जाते हैं?

कुछ सामान्य कारण:

मतदान बाद के विचार-परिवर्तन (voter reconsideration) — कभी-कभी मतदाता बूथ से निकलते वक्त “मैंने इसे दिया” कहते हैं, लेकिन वास्तविक मतदान परिणाम में उनकी ट्रेंड बदल जाती है

सामाजिक-इच्छा का प्रभाव (social desirability bias) — कुछ मतदाता ऐसा जवाब देते हैं जो उन्हें लगता है कि सही है, लेकिन वास्तविक मतदान अलग होता है

एजेंसी द्वारा उठाई गई नमूने (sample) का निष्पक्षता-चुनाव करना कठिन होता है, खासकर विविध जनसंख्या वाले राज्य में जैसे बिहार

गठबन्धनों की ‘अंतिम-मिनट’ रणनीति या बूथ-प्रभाव (booth factor) जो एग्जिट पोल्स में पकड़ में नहीं आते

6. 2015 व 2020 में निकटता

2015 में भी एग्जिट पोल्स ने कुछ अनुमान दिए थे, लेकिन वहाँ परिणाम तथा पोल अनुमान में प्रत्येक सीट स्तर पर कठिनाइयाँ थीं।
2020 में जैसा ऊपर बताया — एनडीए-विपक्ष बहुत करीब थे (वोट शेयर में 0.03% का अंतर) — इस हिसाब से कहना होगा कि “बहुत करीब आयाम” था। लेकिन सीटों के अनुमान में उतार-चढ़ाव था।

7. क्या 2025 में भरोसा किया जाना चाहिए?

हाँ और नहीं — थोड़ा संतुलित उत्तर चाहिए।

हाँ: एग्जिट पोल्स हमें ट्रेंड दिखाते हैं, यानी किस दिशा में वोट बैंक मूव कर रहा है, किन क्षेत्रों में बदलाव है।

नहीं: इनके आधार पर निष्कर्ष नहीं लेना चाहिए कि “यो गठबंधन निश्चित जीत रहा है” — क्योंकि पिछली बार यह गलत साबित हुआ।

इस बार: यदि एग्जिट पोल एक संघक दिशा दिखाते हैं (जैसे कि एनडीए की ओर झुकाव या महागठबंधन की ओर), तो यह एक संकेत हो सकता है — लेकिन परिणाम घोषित होने तक इंतजार करना बेहतर होगा।

8. निष्कर्ष

तो — जैसा कि पुरानी कथाएँ कहती हैं — “जनता का मन कब कहाँ झुकेगा?” यह पूरी तरह ईमानदारी से नहीं कहा जा सकता सिर्फ एग्जिट पोल्स से। उन्होंने कभी-कभी बढ़िया काम किया है, लेकिन “हमेशा” नहीं।
2015 व 2020 में देखा गया कि बहुत-क्लोज रेस थी, वोट शेयर बेहद समकक्ष थे, लेकिन एग्जिट पोल्स ने सीट-माप में कुछ त्रुटियाँ कीं। आज जब 2025 में मतदान खत्म हुआ है, तो हम एग्जिट पोल्स का संकेत-कारक रूप में प्रयोग करें — “सच्चाई” के रूप में नहीं।


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